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१९२ अतुला तुला करते हुए अशोक वृक्ष की आभा का अनुहरण करेंगे-जैसे अशोक वृक्ष अपने नीचे बैठे व्यक्ति को शोक-रहित कर देता है, वैसे ही आप सबको शोक-रहित कर देंगे । इस प्रकार करने से गण-समुद्र की वेला उन्नत होगी, जो कि आपकी आत्मा है। भगवन् ! आपने गुरु-भक्ति के तत्त्व की उचित प्रतिपत्ति की है।
इयं सेवावृत्तिः परमगहना सेति भणितिर्भवत्कृत्यं लक्ष्याङ्गणसु रममाणं कृतवती। ततः ख्याति प्राप्तानुमितिरिति मे ही फलवती,
गुरोर्भक्तेस्तत्त्वं विहितमिह तद् यच्च भवता ।।८।। सेवावृत्ति परम गहन होती है-उस उक्ति ने आपके कृत्य को लक्ष्य के प्रांगण में क्रीड़ा करते हुए पाया है। इससे मेरा अनुमान प्रसिद्ध हो चुका है कि भगवन् ! आपने गुरु-भक्ति के तत्त्व को उचित प्रतिपत्ति की है।
(वि० सं० २००५ पट्टोत्सव, छापर)
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