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________________ ७ : भक्तिविनिमयः गृहीत्वा प्रव्रज्यामकृत निजचेतोवितरणं, तदानीं प्रत्यादाद् गुरुवरमनोवृत्तिममलाम् । अदादक्ष्णोः स्फूर्ति पुनरलभताऽनन्तकरुणा मिदं भक्तेस्तत्त्वं भवति भगवन् ! वा क्रयविधिः ? ।।१।। दीक्षा ग्रहण कर, आपने अपना मन गुरु को दे डाला और बदले में गुरु की पवित्र मनोवृत्ति को पा लिया। आपने आंखों की स्फूर्ति दी और बदले में गुरु की अनन्त करुणा प्राप्त की। भगवन् ! यह भक्ति है या विनिमय ? अकार्षीच्छद्धयां विनयपरिपाटी गुरुपदे, द्रुतं प्रापद् रम्यां महिमपरिपाटी गुरुपदाम् । व्यधाद् भक्तिं हृद्यामभजत विभक्तिं मुनिपदा दिदं भक्तेस्तत्त्वं भवति भगवन् ! वा क्रयविधि: ?।।२॥ आपने गुरु के प्रति श्रद्धायुक्त विनय का प्रयोग किया और बदले में सुरम्य तथा विशाल महिमा के स्थान को प्राप्त कर लिया। आपने गुरु के प्रति हृदय से भक्ति दिखाई और आप मुनिपद से विभक्त हो गए-आचार्य बन गए। भगवन् ! यह भक्ति है या विनिमय ? विचारस्वातन्त्र्यं न हि निरवहत् क्वापि किमपि, विचाराः स्वाधीनाः स्वयमहह जाता गुरुगताः । अगच्छत्स्वच्छात्मानुपदमभवत्तत्पदपति रिदं भक्तेस्तत्त्वं भवति भगवन् ! वा क्रयविधिः?॥३॥ विचारों की स्वतन्त्रता कहीं भी नहीं बरती, किन्तु आज गुरुगत सारे विचार स्वतन्त्र हो गए। आप अपने गुरु के पद के पीछे-पीछे चले और आज उनके पद के स्वामी हो गए। भगवन् ! यह भक्ति है या विनिमय ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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