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उन्हें संकलित करने का निश्चित दृष्टिकोण भी नहीं था । भरतपुर में रात्रिकालीन प्रवचन के पश्चात् एक पंडित ने आशुकवित्व के लिए एक समस्या दी थी'सूच्चग्ने कूपशतकं तदुपरि नगरी तन्त्र गंगाप्रवाहः।' इसकी पूर्ति में की गई आशु कविता तत्काल कोई लिख नहीं सका। इस प्रकार अनेक समस्याओं की पूर्तियां भी लिपिबद्ध नहीं की जा सकीं। जो कुछ संकलित हुईं वे इस संकलन में प्रस्तुत
. आचार्यश्री तुलसी से मुझे विद्यादान मिला। वे मेरे विद्या-गुरु हैं और आचार्य भी हैं। बीज-वपन और विकास-दोनों में उनका योग है। उनकी प्रेरणा ने मुझे सतत विकासोन्मुख किया है। उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने की अपेक्षा मैं आन्तरिक समर्पण को ही अधिक महत्त्व देता हूं। उनका पथ-दर्शन, अनुग्रह और आशीर्वाद मुझे प्राप्त है, इसे मैं अपना परम सौभाग्य मानता हूं। __ मुनि शुभकरणजी और मुनि श्रीचन्दजी ने अनेक रचनाओं को संकलित किया, फलतः उनका उपयोग हो सका । अतः ये दोनों मुनि साधुवादाह हैं। - इस पुस्तक का अनुवाद और संपादन मुनि दुलहराजजी ने किया है। अनुवाद प्राञ्जल भाषा, मूलस्पर्शी शैली और आशय की स्पष्टता-इन तीनों विशेषताओं के साथ हुआ है। वे मेरे अनेक ग्रन्थों का अनुवाद और संपादन पहले. भी कर चुके हैं। अतः संपादन-भार से मैं मुक्त रहता हूं, इसका श्रेय उन्हें सहजलब्ध है। ___ आचार्यश्री तुलसी के 'दीक्षा कल्याण महोत्सव' के अवसर पर पुरानी स्मृतियों के साथ संस्कृत जैसी प्राचीन भाषा में काव्य को नई प्रतिभाओं के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए मैं प्रसन्नता का अनुभव करता हूं।
मुनि नथमल
लाडनूं २०३२, फाल्गुन कृष्णा पंचमी
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