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________________ प्रस्तुति शरीर, मन और चित्त-तीनों का परस्पर गहरा सम्बन्ध है। शरीर पौद्गलिक-परमाणुओं की एक अद्भुत संरचना है। मन उससे भी सूक्ष्म परमाणु-संरचना है। चित्त चेतना का एक स्तर है, जो इस शरीर और मन के साथ कार्य करता है। चित्त अपौद्गलिक (अभौतिक) है, इसलिए उसमें कोई रंग नहीं होता। शरीर और मन पौद्गलिक (भौतिक) हैं। पुद्गल का लक्षण है-वर्ण, गंध, रस और स्पर्शयुक्त होना। कोई भी परमाणु वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से वियक्त नहीं होता। यद्यपि शरीर और मन पौद्गलिक हैं और चित्त अपौद्गलिक है, फिर भी सापेक्षता के सूत्र में बंधे होने के कारण ये परस्पर एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं। परमाणु के चार गुणों में से रंग चित्त को सबसे अधिक प्रभावित करता है। हमारा चित्त नाड़ी संस्थान में क्रियाशील रहता है और उसका मुख्य केन्द्र है-मस्तिष्क। वह अन्तर्जगत् में सूक्ष्म चेतना से जुड़ा हुआ है। वहीं से उसे गतिशीलता के आदेश-निर्देश प्राप्त होते रहते हैं। और बाह्य-जगत् में वह अपने प्रतिबिम्बभूत आभामंडल से जुड़ा होता है। जैसा चित्त होता है, वैसा आभामंडल होता है और जैसा आभामंडल होता है, वैसा चित्त होता है। चित्त को देखकर आभामंडल को जाना जा सकता है और आभामंडल को देखकर चित्त को जाना जा सकता है। चित्त निर्मल तो आभामंडल निर्मल होता है और चित्त मलिन तो आभामंडल मलिन होता है। हमारे शरीर के चारों ओर रश्मियों का एक वलय होता है। वह सूक्ष्म तरंगों के जाल जैसा या रुई के सूक्ष्म-तंतुओं के व्यूह जैसा होता है। ऊपर-नीचे, दायें-बायें-चारों ओर फैला हुआ होता है। जैसी भावधारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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