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________________ तक ले जाएं, अपनी साधना में ले जाएं। रंगों को मान लें ताकि वे हमारा सहयोग करें। शरीर को भी मना लें, वचन को भी मना लें और मन को भी मना लें। क्योंकि इनकी दोतरफी कठिनाई है। भीतर से जो आदर्श आते हैं, उनकी क्रियान्विति करते-करते उनकी भी एक आदत बन जाती है और व्यक्ति की भी आदत बन जाती है। एक व्यक्ति को क्रोध आता है तो भृकुटी तन जाती है, आंखें लाल हो जाती हैं, होठ फड़कने लगते हैं, शरीर कांपने लगता है। क्रोध आता है तब ऐसा होता है। कुछ भाइयों की आदत पड़ जाती है कि क्रोध न आने पर भी वे भृकुटी तान लेते हैं, आंखें लाल कर लेते हैं, शरीर को प्रकंपित करते हैं और क्रोध उतर आता है। नाटक हो रहा था। अनेक दृश्य सामने आ रहे थे। एक अभिनेता आया और उसने इतनी कुशलता से अभिनय किया, ऐसा दृश्य बना कि जार्ज बर्नार्ड शा दर्शकों में से उठकर आए और अभिनेता को एक चांटा जड़ दिया। उसने कहा-'यह क्या किया आपने?' दूसरे ही क्षण जार्ज बर्नार्ड शा संभले। उन्होंने कहा- 'भूल हो गई? मुझे भान ही नहीं रहा कि तुम नाटक कर रहे हो। मैंने तो तुमको असली ही समझ लिया था। मैंने सोचा, तुम बुरा काम कर रहे हो, इसलिए मैंने चांटा लगा दिया।' हमारे शरीर और स्नायुओं को भी एक ऐसी आदत बन जाती है कि जब क्रोध आता है तब शरीर की वह स्थिति बन जाती है या शरीर की वह स्थिति बनने पर क्रोध उतर आता है। क्रोध भी कहेगा कि मुझे क्या पता कि तुम शरीर की ऐसी स्थिति का निर्माण कर लेते हो। मैंने तो देखा कि तुम ऐसा करते हो तो मुझे आना ही चाहिए, तुममें उतरना ही चाहिए। पहले हम इस बात से निपटें कि स्नायुओं की जो आदत बन गई है, मन और वाणी की जो आदत बन गई है, जो वे बाहरी प्रभावों से तत्काल प्रभावित हो जाते हैं, उनको उपशमन की प्रक्रिया के द्वारा उन प्रभावों से बचाएं और जो आदतें बनी हैं, उन आदतों से बचाएं। यह काम पहला है। दूसरा काम होगा कि भीतर से निर्देश इन तक व्यक्तित्व की व्यूह-रचना : आत्मा और शरीर का मिलन-बिन्दु २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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