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________________ लिये गए अणु चमड़ी के माध्यम से बाहर आते हैं। यही ओरा (Auro) है। प्रत्येक व्यक्ति में ओरा होता है, पर हेलो (Halo) कुछेक व्यक्तियों में ही होता है। प्राण-तत्त्व फुप्फुस से नहीं किन्तु श्वास से सम्बन्धित है। ३. मणिपूर इसका वर्ण लाल है। इसका तत्त्व है-अग्नि। ४. अनाहत इसका वर्ण बैंगनी है। इसका तत्त्व है-वायु। ५. विशुद्धि इसका वर्ण जामुनी है। इसका तत्त्व है-ईथर। ६. आज्ञाचक्र इसका वर्ण नीला है। इसका तत्त्व है सफेद। इसी के ऊपर इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना-तीनों का मिलन होता है। इड़ा का वर्ण नीला, पिंगला का वर्ण लाल और सुषुम्ना का वर्ण गहरा लाल है। ७. सहस्रार चक्र इसका वर्ण हरा है। जब यह क्रियाशील होता है तब इसमें सभी वर्ण पाए जाते हैं। कुछ ज्ञातव्य * वर्ण की सात किरणें दृश्य, अनेक किरणें अदृश्य। * वर्ण जीवन को दीर्घ या ह्रस्व कर सकते हैं। वर्णों का संतुलन दीर्घ जीवन देता है और असंतुलन मौत देता है। * रंगों के सम्यक् ज्ञान और सम्यक् प्रयोग से जीवन को शाश्वत जैसा बनाया जा सकता है। * 'अपने आपको जानो' के साथ यह जोड़ना चाहिए- 'जैसा रंग तुम्हें बताता है वैसा अपने आपको जानो'-Know thyself as your colour dictates. २४४ आभामंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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