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अमरीकन वैज्ञानिक महिला डॉ. जे. सी. ट्रस्ट ने सूक्ष्म संवेदनशील कैमरों से आभामण्डल के फोटो लिये। उसने बताया-मैंने देखा कि जो लोग बाहर से साफ-सुथरे रहते हैं, किन्तु भीतर में मलिनता को संजोए रहते हैं, उनके आभामण्डल अत्यन्त विकृत और गंदे होते हैं। जो लोग शरीर से साफ-सुथरे नहीं हैं, किन्तु भीतर से पवित्र हैं, उनके आभामण्डल बहुत स्वच्छ और निर्मल होते हैं।'
हम अपने कपड़ों पर और शरीर की स्वच्छता पर जितना ध्यान देते हैं, उतना ध्यान अपने भीतर से प्रकट होने वाले आभामण्डल पर नहीं देते; अपने भावों पर नहीं देते। परिणाम यह होता है कि बाहर से तो हम स्वस्थ और सुन्दर दीखने लगते हैं और भीतर गंदगी को पालते जाते हैं। यह गन्दगी हमारे मन को तोड़ती जाती है। मन पल-पल टूटता जाता है। ऐसी स्थिति में अशान्ति का साम्राज्य कैसे न हो? लोग कहते हैं- 'दुनिया में इतनी अशान्ति! इतनी बेचैनी! अशान्ति कैसे नहीं होगी? हमारे भीतर के सारे रसायन मन को तोड़ने वाले हैं, फिर अशान्ति न हो, यह कैसे संभव हो सकता है।
. लेश्या के द्वारा हम अपने रसायनों का पता लगा सकते हैं। इस दिशा में अनेक वैज्ञानिक प्रयोग हुए हैं। पसीने के द्वारा जाना जा सकता है कि व्यक्ति का आचरण कैसा है? प्रश्न हो सकता है कि पसीने और आचरण में क्या सम्बन्ध? जो व्यक्ति क्रोधी है, ईर्ष्यालु है, झगड़ालू है, दूषित मनोभाव वाला है, उसके पसीने में एक प्रकार की दुर्गन्ध होगी। जो व्यक्ति सरल है, निश्छल है, पवित्र मनोभाव वाला है, उसके पसीने में दूसरे प्रकार की गंध होगी। जैन परम्परा में यह मान्य है कि तीर्थंकर के शरीर से कमल के फूल जैसी गंध आती है। यह गंध शुभ भावों की प्रतीक है। जिस व्यक्ति के भाव निश्छल, पवित्र और सरल होते हैं उस व्यक्ति के शरीर से भी निर्मलता टपकेगी, सुगंध आएगी।
तेजो-लेश्या, पद्म-लेश्या और शुक्ल-लेश्या के वर्ण, गंध, रस और स्पर्श प्रशस्त होते हैं। तेजो-लेश्या का वर्ण नवोदित सूर्य जैसा लाल होता है। पद्म-लेश्या का वर्ण असन के पुष्प जैसा पीला होता है। शुक्ल-लेश्या का वर्ण शंख जैसा श्वेत होता है। इन तीनों लेश्याओं की गंध सुगन्धित २१६ आभामंडल
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