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________________ उन ग्रन्थियों को खोल देता है । विनम्रता, अहंकारशून्यता रसायन-परिवर्तन का बहुत महत्त्वपूर्ण सूत्र है । विनय के प्रति हमारी धारणाएं भ्रान्त हैं । हमने मान लिया कि विनय दूसरों के प्रति होता है । यह भ्रान्ति है । इस भ्रान्ति ने अनेक प्रश्नों को जन्म दिया है। लोग मानने लग गए कि जो छोटा हो वह विनय करे । बड़े को विनय करने की जरूरत नहीं है । उसे ठूंठ जैसा बनने की आवश्यकता है। यह कैसी भ्रान्ति है? सचाई यह है कि विनय किसी दूसरे के प्रति नहीं होता । विनय होता है स्वयं के प्रति । विनय है - अहंकारशून्यता । यह अपनी आत्मा की अवस्था है । विनय दूसरों के प्रति होता ही नहीं । जब तक यह मानते रहेंगे कि विनय दूसरों के प्रति होता है तब तक जो बड़ा है वह अकड़ा रहेगा । वह दूसरों से विनय चाहेगा। दूसरों के मन में यह प्रतिक्रिया होगी कि वे विनय क्यों करें । वे स्वयं दूसरों से विनय चाहेंगे । साधु भी सोचेगा कि वह बड़ा है । वह विनय क्यों करे ! विनय वह करेगा जो अनुयायी होगा। विनय करना श्रावक का काम है, साधु का काम नहीं है । इस औपचारिक बात ने एक भ्रान्ति पैदा कर दी । साधु का सबसे बड़ा धर्म है- विनय, अहंकार-शून्यता । यह व्यक्ति का अपने लिए अपना धर्म है। किसी दूसरे के लिए नहीं है। हम इस भ्रान्ति को तोड़ें। विनय के सात प्रकार हैं- ज्ञान - विनय, दर्शन-विनय, चारित्र - विनय, मन का विनय, वचन का विनय, शरीर का विनय और सातवां है लोकोपचार विनय । हाथ जोड़ना वास्तविक विनय नहीं है, लोकोपचार विनय है । वास्तव में विनय है - मन का विनय | मन को अनुशासित रखना मन का विनय है । मन को अहंकार से शून्य कर देना, मन का विनय है। वाणी में उद्दंडता न होना वाणी का विनय है । शरीर में अकड़न न होना शरीर का विनय है। ज्ञान के प्रति अपनी अगाढ़ आस्था समर्पित करना ज्ञान का विनय है । दृष्टिकोण को सरल, ऋजु और अनेकान्तमय बनाना दर्शन - विनय है। पवित्र आचरण करना चारित्र - विनय है । यह है विनय । ऐसा विनय सबके लिए आवश्यक है। छोटे के लिए आवश्यक है तो बड़े के लिए भी आवश्यक है। श्रावक के लिए आवश्यक है तो साधु के लिए भी आवश्यक है। यह विनय २१२ आभामंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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