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की विद्युत् जब बाहर निकल जाती है तब व्यक्ति को लगता है कि कुछ खाली हुआ है। उसे सुख का अनुभव होता है। क्रोध आता है और वह क्रोधी व्यक्ति यदि १०-२० गालियां बक देता है तो उसका मन शांत हो जाता है। उसे सुख का अनुभव होता है। जिसको मारना-पीटना है, यदि उसे मारपीट दिया जाता है तो सुख का अनुभव होता है। इनमें होता क्या है? केवल इतना ही होता है कि जो विद्युत् इन वृत्तियों के साथ जुड़ी हुई थी, वह बाहर निकल गई। कार्य समाप्त हो गया। विद्युत् को खर्च करने से आदमी खाली हो जाता है। वह निराशा से भर जाता है। उसका धैर्य समाप्त हो जाता है। उसकी प्रतिभा नष्ट हो जाती है। उसकी चिन्तन-शक्ति समाप्त हो जाती है। उसकी सारी अच्छाइयां चुक जाती हैं। शरीर का बल, मन और बुद्धि का बल नष्ट हो जाता है। प्राणधारा को सक्रिय रखने वाला ईंधन समाप्त हो जाता है। ईंधन के साथ-साथ सक्रियता समाप्त हो जाती है। इसलिए ईंधन को चुका देना वज्र मूर्खता है। एक दिन ऐसा आता है कि आदमी शक्तिशून्य हो जाता है। वह ढीला हो जाता है। मन शक्तिहीन हो जाता है। सारा का सारा शून्य-सा लगने लगता है।
हम विद्युत् को खर्च न करें, केवल वृत्ति का रेचन करें। वृत्तियों के जो परमाणु हैं, उन परमाणुओं का रेचन करो, विद्युत् को खर्च मत करो। विद्युत् को सुरक्षित रखो, यह है अध्यात्म की प्रक्रिया। ___ दमन की बात उपयुक्त नहीं है। अध्यात्म के किसी भी अनुभवी आचार्य ने दमन का प्रतिपादन नहीं किया। प्राचीन ग्रन्थों में दमन की भाषा नहीं मिलती। हो सकता है कि धर्म के कुछ आचार्यों ने ऐसा लेखन किया हो, पर उसे अनुभवशून्य लेखन ही मानना चाहिए। हर किसी लेखक की बात मान्य नहीं होती। उसी लेखक की बात मान्य होती है जो प्रत्यक्षज्ञानी है। कषायशून्य है, सम्यक्-दृष्टिकोण से संपन्न है, आत्मा को उपलब्ध है, जो अध्यात्म की गहराई में उतरने का अभ्यस्त है, उसकी बात मान्य होती है, प्रमाण होती है। दूसरे व्यक्ति की बात प्रमाण नहीं होती। धर्मग्रन्थों में यत्र-तत्र दमन के कथन प्राप्त होते हैं, परन्तु यह नहीं कह सकते कि सभी धर्मग्रन्थों में यह बात मान्य रही
आभामंडल १६३
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