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________________ व्यक्ति कर्म-शरीर में जीता है। यह उसका व्यक्तिगत जीवन है। व्यक्ति भाव में जीता है। भाव व्यक्ति का वैयक्तिक स्वरूप है। मूर्छा भी वैयक्तिक है। जब व्यक्ति मूर्छा की सीमा का अतिक्रमण कर राग में प्रवेश करता है, राग की चेतना में आता है, वैसे ही वह व्यक्ति से सामाजिक बन जाता है। सामाजिकता का पहला बिन्दु है-राग। जो राग का आदि-बिन्दु है, वही तनाव का आदि-बिन्दु है। जहां से सामाजिकता शुरू होती है, वहीं से तनाव शुरू होता है। तनाव और सामाजिकता का अस्तित्व पृथक्-पृथक् नहीं है। जहां तक व्यक्ति व्यक्ति है, वहां तक तनाव बहुत गहरे में होता है, इसलिए उसकी अनुभूति नहीं होती। किन्तु व्यक्ति जैसे ही सामाजिक बनता है, वैसे ही तनाव प्रकट होने लगता है, उसकी अनुभूति होने लगती है। तनाव का आदि-बिन्दु है-राग, प्रियता की अनुभूति, कामना। राग से तनाव शुरू होता है, प्रियता की अनुभूति से तनाव प्रारंभ होता है, काम से तनाव उत्पन्न होता है। राग यदि न हो तो व्यक्ति सामाजिक नहीं बन सकता। एक को दूसरे से जोड़ने वाला है राग। राग परस्परता का अनुबंध करता। जहां पारस्परिकता हुई, एक-दूसरे से जुड़ा या बंधा वहां सामाजिकता शुरू हो जाती है। राग व्यक्तियों को बांधता है। वह व्यक्तियों को पदार्थ से जोड़ता है। राग नहीं होता है तो व्यक्ति पदार्थ-प्रतिबद्ध नहीं होता। राग नहीं होता है तो एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से नहीं जुड़ता। व्यक्ति अकेला ही होता है। केवल अकेला। कोई किसी के साथ नहीं जुड़ता। जहां जुड़ने का प्रश्न है वहां राग का होना जरूरी है। बिना राग के कोई कैसे जुड़ेगा? एक परमाणु भी यदि दूसरे परमाणु के साथ जुड़ता है तो वहां भी राग का होना, चिकनाहट का होना जरूरी है। स्निग्धता के बिना बंध नहीं होता। यह जो पोजिटिव प्रक्रिया है, विधायकता है, वह राग है, स्नेह है, स्निग्धता है। बंधन वही करती है। राग से बंधन शुरू होता है। दूसरे के साथ सम्बन्ध या सम्पर्क स्थापित होता है राग से। उसके बाद उस राग-चेतना के कण आगे से आगे तरंगें बनाते चलते हैं और लोभ का जन्म हो जाता है। तब व्यक्ति संग्रह की ओर मुड़ता तनाव और ध्यान (२) १४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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