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________________ ३. 8. १. व्यक्तित्व के बदलते रूप • कभी अच्छा काम, कभी बुरा काम, कभी निष्क्रिय । - कभी अच्छा विचार, कभी बुरा विचार, कभी निर्विचार | कभी अच्छा भाव, कभी बुरा भाव, कभी भाव - शून्य । कभी प्रेम, कभी घृणा । कभी राग, कभी द्वेष 1 कभी ऐक्य, कभी माया । कभी विश्वास, कभी सन्देह | 19. कभी हास्य, कभी भय । कभी विराग, कभी वासना । मनुष्य के भीतर एक विशाल तालाब है। उससे निरन्तर दो स्रोत प्रवाहित हो रहे हैं - एक है असंक्लेश का, दूसरा है संक्लेश का । ५. • प्राणशक्ति की विद्युत् तरंग के द्वारा वे प्रवाह भीतर से बाहर तक पहुंचते हैं। • हम मूर्च्छित होते हैं तो संक्लेश का दरवाजा खुलता है 1 इसीलिए हम क्रियातंत्र के प्रति जागृत बनें - में । मनुष्य बुरा कार्य, बुरा विचार और बुरा भाव नहीं चाहता, फिर ऐसा क्यों होता है? शरीर प्रेक्षा: बुरे विचार की तरंग स्नायु बुरा कार्य स्नायु द्वारा । श्वास प्रेक्षा : श्वास को बुरे विचार और कार्य का माध्यम न बनने दें। क्रियातंत्र की जागरूकता की दो निष्पत्तियां Jain Education International व्यक्तित्व के बदलते रूप For Private & Personal Use Only ३ www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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