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8.
१. व्यक्तित्व के बदलते रूप
• कभी अच्छा काम, कभी बुरा काम, कभी निष्क्रिय । - कभी अच्छा विचार, कभी बुरा विचार, कभी निर्विचार | कभी अच्छा भाव, कभी बुरा भाव, कभी भाव - शून्य । कभी प्रेम, कभी घृणा ।
कभी राग, कभी द्वेष 1 कभी ऐक्य, कभी माया । कभी विश्वास, कभी सन्देह |
19.
कभी हास्य, कभी भय । कभी विराग, कभी वासना ।
मनुष्य के भीतर एक विशाल तालाब है। उससे निरन्तर दो स्रोत प्रवाहित हो रहे हैं - एक है असंक्लेश का, दूसरा है संक्लेश का । ५. • प्राणशक्ति की विद्युत् तरंग के द्वारा वे प्रवाह भीतर से बाहर तक पहुंचते हैं।
• हम मूर्च्छित होते हैं तो संक्लेश का दरवाजा खुलता है 1 इसीलिए हम क्रियातंत्र के प्रति जागृत बनें -
में ।
मनुष्य बुरा कार्य, बुरा विचार और बुरा भाव नहीं चाहता, फिर ऐसा क्यों होता है?
शरीर प्रेक्षा: बुरे विचार की तरंग स्नायु
बुरा कार्य स्नायु द्वारा ।
श्वास प्रेक्षा : श्वास को बुरे विचार और कार्य का माध्यम न बनने दें।
क्रियातंत्र की जागरूकता की दो निष्पत्तियां
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व्यक्तित्व के बदलते रूप
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