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एक बार लक्ष्मी के पास अंधकार के रंग मिलकर आए। जिसका व्यक्तित्व सार्वजनिक होता है, उसके पास सब आते हैं। वह सबका होता है। उसे सबके साथ सम्बन्ध रखना होता है। लक्ष्मी का व्यक्तित्व सार्वजनिक है। दुनिया में एक भी प्राणी ऐसा नहीं है, जिसका सम्बन्ध लक्ष्मी से न हो या लक्ष्मी का सम्बन्ध उससे न हो। दुनिया का एक भी प्राणी ऐसा नहीं है जो लक्ष्मी के बिना जी सके, उसकी छत्रछाया के बिना रह सके। इसलिए लक्ष्मी का व्यक्तित्व व्यापक, विराट और सार्वजनिक है। अंधकार के रंग लक्ष्मी के पास आकर बोले-'देवि! आप हमारा सहयोग करें। आपके सहयोग के बिना, आपकी छत्रछाया के बिना हमारा सम्मान नहीं होता, हमारा कोई आदर नहीं करता। इसलिए जहां हमारा अस्तित्व है, हमारी प्रतिष्ठा है, वहां आपको हमारा सहयोग करना होगा और हमारे साथ रहना होगा। हम आपकी छत्रछाया के इच्छुक हैं। लक्ष्मी ने कहा-'अच्छी बात है, आऊंगी।' फिर लक्ष्मी के मन में प्रश्न उठा। उसने रंगों से पूछा-'यह तो बताओ कि तुम्हारी छत्रछाया में रहने वाले लोग कौन हैं और कौन व्यक्ति तुम्हें अच्छे लगते हैं?' तब वे अंधकार के रंग बोले-'जो व्यक्ति क्षुद्र होता है, ओछी वृत्ति वाला होता है, स्वार्थी होता है, जो बिना सोचे-समझे काम करने वाला होता है, जो नृशंस होता है, जिसका इन्द्रियों पर कोई अधिकार नहीं होता, जो आसक्त होता है, क्रोध करता है, बात-बात में द्वेष की भावना लाता है, जो शठता से परिपूर्ण है, प्रमत्त है, आलसी है, रसलोलुप और वक्र आचरण वाला है, जिसका दृष्टिकोण मिथ्या है, जो किसी भी बात को सम्यग् ग्रहण नहीं करता, जैसे-यदि उसे कोई कहे कि तुम भारी होते जा रहे हो तो वह कहता है-क्या तुम्हारे बाप की रोटी खाता हूं? कोई कहता है-तुम दुबले होते जा रहे हो तो वह कहता है-शरीर मेरा है, तुम्हें क्या चिन्ता? वह किसी भी बात को सम्यग् ग्रहण नहीं करता, पत्नी खाने के लिए कहे तो भी लड़ेगा कि तुमने इतना जल्दी खाने को क्यों कहा और यदि खाने के लिए न कहे तो भी लड़ेगा कि तुम मेरी देखभाल ही नहीं करती। वह पूरा का पूरा अन्यथा ग्रहण ही करता है, जो अप्रियभाषी और कर्कश वचन बोलने वाला है, जो चोरी करने
रंगों का ध्यान और स्वभाव-परिवर्तन १०३
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