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का एक रहस्यविद् हुआ है-डा. हिरोशी मोकोयामा। उसने एक रोगी को देखा। उसकी बीमारी का कोई पता नहीं चला। मोकोयामा ने पूछा-'तुम्हारी सास की मौत हुई है ?'
'हां।' 'तुम्हारे घर के सामने कोई पुराना पेड़ है ?' 'हां ।'
'बस, यही है तुम्हारी बीमारी का कारण । कुछ लोग उस पेड़ को काटना चाहते हैं। उस पेड़ में एक पवित्र आत्मा रहती है और उसी की चेतावनी है तुम्हारी यह बीमारी।'
__ डॉक्टर की बात सही निकली। कुछ दिनों बाद तूफान आया और वह पेड़ उखड़ गया। उसने उसी स्थान पर एक नया पेड़ लगा दिया। उसी दिन से बीमारी ठीक होने लगी और कुछ ही दिनों में वह व्यक्ति स्वस्थ हो गया। महत्त्वपूर्ण स्वीकृति
कछ मतात्माओं के निवास-स्थान भी ये पेड होते हैं। गुरु-धारणा करते समय एक जैन श्रावक यह नियम स्वीकार करता है-मैं बड़े वृक्ष को नहीं काटूंगा। यह बहुत महत्त्वपूर्ण स्वीकृति है। विश्नोई समाज ने पेड़ों के लिए जो काम किया है, वह बहुत अद्भुत है। विश्नोई समाज में यह मान्यता प्रचलित है-एक पेड़ को काटना दस लड़कों को मारने के समान है। विश्रोई समाज के पुरखों ने पेड़ों की सुरक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया। जब जोधपुर के राजा ने पेड़ कटवाने शुरू किए तब विश्नोई समाज के लोगों ने सत्याग्रह कर दिया। उन्होंने कहा- पहले हम मरेंगे फिर पेड़ कटेंगे। पेड़ को विनाश से बचाने के लिए अनेक लोगों ने अपने प्राणों की आहुती दे दी।
हम इस सचाई को समझें-जितने पेड़ कटेंगे उतना ही मनुष्य का जीवन असुरक्षित बनेगा। पेड़ काटने का अर्थ है--हिंसा और अपने सहयोगी का विनाश। पेड़ काटने में हिंसा तो होती ही है किन्तु उसके साथ-साथ जीवन को भी खतरा पैदा हो जाता है। वनस्पति और मनुष्य-दोनों का अस्तित्व इतना जुड़ा हुआ है कि उन्हें अलग नहीं किया जा किया जा सकता। आज मनुष्य इस सचाई को अनदेखी कर रहा है। वह लोभ के कारण बिना सोचे-समझे वनस्पति-जगत् के साथ घोर अन्याय और क्रूरता का व्यवहार करता चला जा रहा है और यही उसके लिए समस्या का कारण बन रहा है। कृत्रिम क्षुधा से बचें
__ भगवान् महावीर ने हिंसा के दो प्रकार बतलाए-अर्थ-हिंसा और अनर्थहिंसा। यह बहुत वैज्ञानिक वर्गीकरण है। ये दोनों शब्द जीवन के व्यवहार से जुड़े हुए हैं। व्यक्ति आवश्यक हिंसा को नहीं छोड़ सकता, जीवन की वास्तविक जरूरतों को कम नहीं कर सकता, किन्तु अनावश्यक हिंसा से बच सकता है, कृत्रिम जरूरतों का
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