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________________ 53 अहिंसा और निःशस्त्रीकरण ने अधिक किया है, जिनका हिंसा से निकट का संबंध रहा। इसे अनुभूति का सत्य या भोगा हुआ सत्य कहना अधिक संगत होगा। अहिंसा की प्रथम आचार-संहिता परमाणु अस्त्रों की विभीषिका से सभी चिन्तनशील व्यक्ति चिन्तित हैं। पर जिस देश के पास परमाणु अस्त्रों का विशाल भण्डार है, उसका नेता परमाणु अस्त्रों की समाप्ति की बात करता है, वह बहुत अर्थवान् और मूल्यवान् है। इससे सहज ही यह निष्कर्ष उतर आता है कि हिंसा की प्रखरता अहिंसा के लिए रास्ता बनाती है। भगवान् महावीर ने ढाई हजार वर्ष पहले निःशस्त्रीकरण की बात कही थी। संभवतः शस्त्र-निर्माण एवं शस्त्र-व्यापार के सम्बन्ध में उन्होंने जो आचार-संहिता दी, वह अहिंसा के क्षेत्र में उस समय भी प्रथम थी और आज भी प्रथम है। उनकी वाणी का एक महत्त्वपूर्ण संकलन है- आचारांग। उसका प्रथम अध्ययन है- शस्त्र-परिज्ञा। उसे आज की भाषा में निःशस्त्रीकरण कहा जा सकता है। भगवान् ने प्रस्तर, लौह आदि धातुओं से बने शस्त्रों को शस्त्र की परिगणना में दूसरा स्थान दिया। उनकी भाषा में पहला स्थान है- शस्त्र के निर्माण के लिए क्रियाशील भाव का तथा उस अविरति या आकांक्षा का, जो धातु-द्रव्य के शस्त्रों के निर्माण की मूलभूत प्रेरणा है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा उद्घोषित स्वर- 'युद्ध पहले मनुष्य के मस्तिष्क में लड़ा जाता है, फिर समरांगण में उसी भाव-शस्त्र के स्वर का पुनरुच्चारण है। मूल है भावनात्मक शस्त्र प्रस्तर युग से अणु युग तक जितने अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण हुआ है, उनकी पृष्ठभूमि में उतने ही भाव निर्मित हुए हैं । अणुबम का भाव पहले विकसित हुआ, फिर अणुबम का निर्माण हुआ। भावात्मक शस्त्र का नि:शस्त्रीकरण किए बिना अणु अस्त्रों का निःशस्त्रीकरण संभव नहीं हो सकता। इसलिए आवश्यकता है भावधारा के परिवर्तन की, परिष्कर की। उसके लिए एक सशक्त जन-आन्दोलन की जरूरत है। अस्तित्व का संकट __ एक राजनेता के मुंह से नि:शस्त्रीकरण का स्वर प्रस्फुटित होता है, उसके पीछे मानव-जाति की व्यथा का प्रस्फुटन है । उस सचाई की अभिव्यंजना है कि इस अणुअस्त्रों की होड़ ने मनुष्य जाति के अस्तित्व को संकट में डाल दिया। अब दो ही विकल्प सामने हैं- या तो इस दौड़ की समाप्ति या मानवजाति की समाप्ति । दूसरा विकल्प कितना भयावह है और कितना खतरनाक है ! उसकी कल्पना करते ही मानवीय बुद्धि विभ्रान्त हो जाती है। आखिर यह होड़ किसलिए है ? क्या इस होड़ में अपने आपको कोई सुरक्षित रख पाएगा? यदि नहीं रख पाएगा तो यह मानव जाति के विनाश का संकल्प क्या कोरी मूर्खता नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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