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प्राक्कथन
अहिंसा एक जीवंत सत्य है, पर उसे लोकोत्तर विकास के साथ जोड़कर अधिकांश धार्मिकों ने उसे क्रियाकांडों में ही परिसीमित कर दिया । उसका परिणाम भी सामने आया । लोकोत्तर विकास हुआ या नहीं हुआ, पर लोकव्यवस्था अवश्य चरमरा गई। कुछ राष्ट्र जहाँ अनैतिकता के चक्रव्यूह में फंसकर निस्तेज हो गए वहाँ कुछ राष्ट्र संकीर्ण स्वार्थवाद में फँसकर दूसरों के लिए सिरदर्द बन गए। कुल मिलाकर आज पूरी मानवजाति एक संकट में फँस गयी है। युद्ध, शोषण, भेदभाव आदि जीवन के साथ जुड़ गए हैं। ऐसी विकट एवं भयावह स्थिति
आज से 45 वर्ष पूर्व आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत के रूप में संयम का एक आंदोलन शुरू किया । जाति, रंग, राष्ट्र आदि से ऊपर उठकर चरित्र - शुद्धि का एक अनूठा आंदोलन बन गया। राष्ट्र के सभी वर्गों के लोगों ने इसका समादर किया और धीरे-धीरे अणुव्रत नैतिकता का एक पर्याय बन गया। लाखों लोगों ने इसका परिचय प्राप्त कर इसे जीवन में आचरित करने का संकल्प लिया । नैतिकता के क्षेत्र में यह न केवल एक प्रभावी आन्दोलन है अपितु इसने अपना एक लम्बा और यशस्वी इतिहास बनाया है। लोक-चेतना को जागृत एवं संयमित बनाना ही इसका उद्देश्य रहा है।
यह प्रसन्नता का विषय है कि अब शिक्षा क्षेत्र में भी इस विचार को आदर मिल रहा है। अजमेर विश्वविद्यालय ने स्नातक द्वितीय वर्ष के पाठ्यक्रम में इसे एक पृथक् प्रश्न-पत्र के रूप में शामिल कर एक श्लाघनीय पहल की है। जहाँ एक ओर शिक्षा जगत् में भौतिकता प्रभावी है, वहीं अजमेर विश्वविद्यालय का यह कदम सम्पूर्ण मानवता के लिए वरदान सिद्ध होगा। आज इस तरह के साहसपूर्ण निर्णय की न केवल आवश्यकता है अपितु अत्यधिक उपयोगिता भी है। इस दिशा अजमेर विश्वविद्यालय का यह निर्णय मील का पत्थर साबित होगा तथा अन्य विश्वविद्यालय भी इसका अनुकरण कर शिक्षा जगत् में क्रांतिकारी परिवर्तन कर अभिशप्त मानवता को त्राण दिलाने में अहं भूमिका अदा करेंगे।
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