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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग
आवश्यक है श्रम
युग की समीक्षा करें तो एक नई स्थिति सामने आती है, जो इस युग की विशिष्ट देन है। प्राचीनकाल में मांसपेशियों पर दबाव ज्यादा पड़ता था और नाड़ी तंत्र पर दबाव कम पड़ता था । आदमी अपने हाथ से काम करता, श्रम करता। जब श्रम होता है तो मांसपेशियों पर अधिक दबाव पड़ता है किन्तु नाड़ी तंत्र को विश्राम ज्यादा मिलता है। आज उलटा हो गया। इतने साधन और सुविधाएं हो गईं, जिनसे मांसपेशियों को तो बहुत आराम मिल रहा है, किन्तु नाड़ी तंत्र पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा है। यह
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एक भिन्न प्रकृति बन गई। पैदल चलने की जरूरत नहीं, वाहन तैयार है। पंखा झलने की जरूरत नहीं, बिजली का पंखा तैयार है । न हाथ की मांसपेशियों को श्रम देने की जरूरत है और न पैर की मांसपेशियों को श्रम देने की जरूरत है। इतने सुविधा के साधन बन गए कि मांसेपशियां अच्छी तरह से आराम करें। व्यावसायिक, औद्योगिक तथा दूसरे दूसरे चिंतन के प्रकारों से तनाव, भय आदि इतने ज्यादा व्याप्त हैं कि नाड़ीतंत्र पर सीमा के अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है। यह एक उलटी समस्या हो गई और 21 वीं शताब्दी की जो कल्पना की जा रही है, उसमें यह समस्या और अधिक भयंकर बन जाएगी। कम्प्यूटर का युग आएगा, रोबोट का युग आएगा तो मांसपेशियों को बिलकुल तनाव देने की जरूरत नहीं रहेगी। यह यन्त्र- मानव घर का सारा काम कर देगा । कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। न पंखे के लिए बटन दबाने की जरूरत, न बिजली जलाने की जरूरत । कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। कैसा अच्छा युग है ! कितनी सुविधा का युग है कि कुछ भी करने की जरूरत नहीं है । यह स्वर्गीय कल्पना जैसी बात लगती है। कितना आराम होगा आदमी को ! इस कल्पना के आधार पर आदमी का भविष्य कितना जटिल होगा, यह नहीं सोचा ! यदि ऐसा होगा तो मांसपेशियां बिलकुल निकम्मी हो जाएंगी। एक ओर मांसपेशियों का निकम्मापन होगा तो दूसरी ओर चिंतन, विचार और नाड़ी तंत्र पर अत्यधिक दबाव बढ़ जाएगा। पहला दबाव निठल्लेपन का होगा । आदमी फिर करेगा क्या ?
कल्पना इक्कीसवीं शताब्दी की
21 वीं शताब्दी की जो कल्पना की जा रही है, शायद वह मनुष्य के लिए वरदान नहीं होगी। अगर वैसा हुआ तो आदमी भी एक यंत्र का पुर्जा बन जाएगा इससे ज्यादा उसका मूल्य नहीं होगा ।
इस सारी स्थिति और प्रकृति को बदलने के लिए, संतुलन बनाने के लिए शारीरिक श्रम और मानसिक श्रम-दोनों में संतुलन बना रहे, यह आवश्यक है मस्तिष्क को सक्रिय रखने के लिए मानसिक श्रम बहुत आवश्यक है । शरीर के स्वस्थ रखने के लिए मांसपेशीय श्रम बहुत आवश्यक है। दोनों का संतुलन बन
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