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________________ अहिंसा का व्यावहारिक स्वरूप रोटी - फुलके छोटे बनाते हैं । वह जब खाने को बैठा तो पूरी की पूरी रोटी का एक - एक ग्रास लेने लगा। सब हंसने लगे। उसकी पत्नी भी बैठी थी । उसने सोचा- बड़ा भद्दा लगेगा कि कितना अनजान है, गंवार है, कुछ जानता ही नहीं है। पूरी की पूरी रोटी का एक ही ग्रास लेता है, एक ही कौर लेता है। उसने सोचा कि क्या करें ? पुराना जमाना था। इतने लोगों के बीच कहना भी अच्छा नहीं लगता। उसने संकेत से और इशारे से समझाना शुरू किया। दो अंगुली से संकेत दिया कि दो-दो टुकड़े करके खाओ, पूरी रोटी एक साथ मत खाओ। उसने संकेत को ठीक समझा नहीं। सोचा, शायद यहां की परंपरा है कि एक-एक रोटी खाना ठीक नहीं है। उसने दो-दो खाना शुरू कर दिया। एक के बजाय दो रोटियां एक साथ चलने लगीं। लोग हंसने लगे। पत्नी ने लज्जा से मुंह ढक लिया । अहिंसा का संकेत हमने भी अहिंसा के संकेत को समझा नहीं । अहिंसा का संकेत है- दोनों पक्षों को देखो। एक ही पक्ष को मत देखो, दोनों को देखो । व्यवहार को देखते हो तो परमार्थ को भी देखो। दूसरे को देखते हो तो अपने आपको भी देखो। इस संकेत को हम नहीं समझ पाए। जो एक पक्ष था व्यवहार को देखना, दूसरे को देखना, इससे हम व्यवहार में अधिक चले गए और दूसरे को अधिक देखने लग गए। हम स्वयं अपना विश्लेषण करें। हम पूरे दिन दूसरे को देखते हैं कि दूसरा क्या करता है। दूसरा हमारे लिए क्या कर रहा है। कोई भी गलती होती है तो आदमी अपने आपको बचा लेता है, गलती दूसरे पर आरोपित करता है। उसने ऐसा कर दिया है। रसोई में घी का बर्तन पड़ा है। बहू चली, ठोकर लगी और घी ढुल गया। सास बोली, अंधी है, देखकर नहीं चलती। घी को नीचे गिरा दिया ? यह दूसरे पर दोषारोपण हो गया। दोचार दिनों के बाद वहीं बर्तन पड़ा था। सास जा रही थी, ठोकर लगी और घी नीचे गिर गया। तत्काल सास बोली, कितने बेवकूफ लोग हैं, रास्ते का ध्यान ही नहीं रखते, बर्तन को बीच में रख देते हैं। यह दोषारोपण भी हुआ दूसरे पर। अपने आपको आदमी बचा लेता है। इस बचाने वाली वृत्ति ने सचमुच अहिंसा की कब्र खोद दी। जाने-अनजाने इस व्यावहारिक अहिंसा की धारणा ने पारमार्थिक अहिंसा की अन्त्येष्टि कर दी। हमने उसको भुला दिया । 21 आज हम सारे समाज का विश्लेषण करें, प्रत्येक व्यक्ति का विश्लेषण करें तो पता चलेगा कि पारमार्थिक अहिंसा के लिए चिन्तन का कोई अवकाश नहीं है। दूसरे पहलू के लिए, दूसरे पक्ष के लिए हमने सारी खिड़कियां और सारे दरवाजे बंद कर दिए हैं। केवल व्यवहार की बात चल रही है। और हमारा प्रश्न भी है कि मनुष्य में हिंसा का जन्म कैसे हुआ ? व्यवहार की भूमिका पर चलते-चलते अगर हिंसा का जन्म नहीं होगा तो और कब होगा ? कैसे वाली बात हमारे सामने क्यों आती है ? हमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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