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________________ पाथेय विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय शिक्षा के ये तीन संस्थान हैं। इनमें प्रवेश पाने वाले विद्यार्थी के उद्देश्य पर गम्भीर चिन्तन आवश्यक है। यदि वह केवल अच्छी आजीविका के उद्देश्य से अध्ययन करता है तो यह उद्देश्य व्यापक नहीं है। तर्कशास्त्र की भाषा में उद्देश्य में अव्याप्ति और अतिव्याप्ति का दोष नहीं होना चाहिए । अध्यापक और प्राध्यापक यदि विद्यार्थी को कला, शिल्प और कर्मदक्ष बनाने के उद्देश्य से ही पढ़ाते हैं तो यह भी विशुद्धि नहीं है । उद्देश्य होना चाहिए जीवन का सर्वांगीण अथवा संतुलित विकास । अर्थार्जन की योग्यता प्राप्त करना जीवन का बाह्यपक्ष है। भावात्मक संतुलन का विकास करना आंतरिक पक्ष है । अध्ययन का उद्देश्य हो सकता है- दोनों पक्षों का संतुलित विकास । शिक्षा के क्षेत्र में दोनों पक्षों के संतुलन की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, इसीलिए समाज में अनैतिकता का चक्र चल रहा है, हिंसा बढ़ रही है। यदि प्रारम्भ से ही विद्यार्थी को नैतिकता अथवा अणुव्रत की शिक्षा दी जाए और अहिंसा के प्रयोग कराएँ जाए तो हिंसा और अनैतिकता- दोनों स्थितियों में परिवर्तन की सम्भावना की जा सकती है। अजमेर विश्वविद्यालय ने 'जीवन विज्ञान और जैनविद्या' के स्नातकस्तरीय विषय को स्वीकृति देकर इस क्षेत्र में एक नया आयाम खोला है। आचार्यश्री तुलसी के दिशादर्शन में जीवन विज्ञान और अहिंसा - प्रशिक्षण के क्षेत्र में अनेक प्रयोग चल रहे हैं। जैन विश्वभारती संस्थान (डीम्ड युनिवर्सिटी) उन प्रयोगों के लिए प्रयोग-स्थली बन रही है। वे प्रयोग शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक बनें, यह हमारी महत्त्वाकांक्षा नहीं, सदकांक्षा है। मुनि सुखलालजी और आनन्दप्रकाश त्रिपाठी 'रत्नेश' ने प्रस्तुत पुस्तक का समाकलन करने में काफी श्रम किया है। उनका श्रम विद्यार्थी वर्ग के जीवन का प्रकाश - सेतु बने । आचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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