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________________ अहिंसा का सिद्धान्त योग दर्शन के प्रवर्तक महर्षि पतंजलि ने अहिंसा के प्रतिफल पर प्रकाश डालते हुए यह कहा है कि 'अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः' अर्थात् अहिंसाप्रतिष्ठ व्यक्ति की सन्निधि में सब प्राणी वैरविहीन होते हैं । बौद्ध धर्म, दर्शन में भी अहिंसा को प्राण माना गया है। गौतम बुद्ध के अनुसार मैत्री और करुणा अर्थात् प्राणीमात्र के प्रति प्रेम और सभी जीवों के प्रति दया का भाव ही अहिंसा है। उन्होंने अहिंसात्मक कर्म को सम्यक् कर्म बतलाया है तथा अहिंसा के मार्ग में बाधक शस्त्र प्राणी, मांस, मदिरा और विष के व्यापार को त्याज्य कहा है। सम्यक् अजीव के अन्तर्गत इन्हें वर्णित बतलाया है। तेरापंथ के आद्य प्रणेता आचार्य भिक्षु अहिंसा के गूढ विचारक, अनुपम उपदेशक और अनन्य उपासक थे। उनके अनुसार हिंसा रहित शुद्ध अहिंसात्मक भाव ही अहिंसा है। वे अहिंसा के अखण्ड और विशुद्ध रूप में विश्वास करते थे। उनका कहना था कि अन्य वस्तुएं परस्पर मिल सकती हैं किन्तु अहिंसा में हिंसा कभी नहीं मिल सकती। ____ अहिंसा के आधुनिक व्याख्याकार महात्मा गांधी के शिष्य पाश्चात्य विद्वान् के लांजा डेलवास्टो के अनुसार "समस्त जीवों के प्रति दुर्भावना का पूर्ण तिरोभाव ही अहिंसा है।" 'बन्दूक सिर तोड़ सकती है किन्तु सिर फेर नहीं सकती।' अहिंसा कायरों की चादर नहीं अपितु वीरों का भूषण है। 'अहिंसा धर्म केवल ऋषियों एवं संतों के लिए ही नहीं है। यह सर्व साधारण जनता के लिए है।' ये कथन गांधीजी के अहिंसा सम्बन्धी विचार को ही परिपुष्ट करते हैं। जैन दर्शन में अहिंसा का जितना सूक्ष्म चिन्तन एवं विश्लेषण मिलता है उतना अन्यत्र नहीं है। अन्य दर्शनों में अहिंसा सम्बन्धी अवधारणा में कथमपि शिथिलता है। अहिंसा सम्बन्धी विचार प्रस्तुत करने वाले कुछ विद्वान् भी अहिंसा का अंकन परिस्थितियों के आधार पर करते हैं । महात्मा गांधी ने अहिंसा के अमोघ अस्त्र को अपनाया था और आजीवन इस व्रत का पालन भी किया था। इस महनीय शस्त्र को अपनाकर भारत की आजादी जैसे दुःसाध्य लक्ष्य को प्राप्त किया था। उनकी इस उपलब्धि पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए वायसराय लार्ड माउन्टबेटन ने कहा था कि जो कार्य पचास हजार सिपाही नहीं कर सकते थे वह कार्य गांधीजी ने अहिंसा के शस्त्र से कर दिखाया। सब अस्त्र-शस्त्र एक तरफ और गांधीजी का अहिंसा शस्त्र एक तरफ। किन्तु अहिंसा के इस पुजारी को भी परिस्थितियों ने इतर दृष्टिकोण अपनाने को बाध्य किया था। रात भर पीड़ा से कराहते हुए बकरे की पीड़ा हरने के उद्देश्य से उसे जहर का इन्जेक्शन दिलाने की वकालत उन्होंने की थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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