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________________ 208 अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग दिन दुनिया उसे अवश्य समझेगी। महात्मा ईसा का जीवन इसका ज्वलन्त प्रमाण है। आचार्य भिक्षु भी इसी कोटि के महापुरुष थे। दूसरों के आक्षेप, असहयोग आदि की उपेक्षा कर निर्भीकता से चलने वाला ही अहिंसा के पथ पर आगे बढ़ सकता है। भय भय को उत्पन्न करता है, अभय अभय को। सदृश की उत्पत्ति का जैविक सिद्धांत मनुष्य की मानसिक वृत्तियों पर भी घटित होता है । मनोविज्ञान की दृष्टि से संवेगात्मक व्यवहार और संवेगात्मक अनुभव--ये दोनों हाइपोथेलेमस से पैदा होते हैं । ये दोनों इमोशनल हैं। हमारे शरीर में ऐसे केन्द्र हैं जहां से नाना प्रकार की प्रवत्तियों का संचालन होता है। संवेग का संचालन शरीर से होता है। सारे संवेग हाइपोथेलेमस में पैदा होते हैं। भय का भी यही स्थान है। ___भय बहुत बड़ा संवेग है। इससे छुटकारा पाना बहुत आवश्यक है। अभय के द्वारा ही भय को समाप्त किया जा सकता है। 4. सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा प्रयोग-विधि 1. महाप्राण-ध्वनि 2 मिनट 2. कायोत्सर्ग 5 मिनट 3. नीले रंग का श्वास लें। अनुभव करें--प्रत्येक श्वास के साथ नीले रंग के परमाणु भीतर प्रवेश कर रहे हैं। 3 मिनट 4. विशुद्धि-केन्द्र पर नीले रंग का ध्यान करें 3 मिनट 5. ज्योति-केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित कर अनुप्रेक्षा करें-- + सहिष्णुता का भाव पुष्ट हो रहा है। + मानसिक संतुलन बढ़ रहा है । इस शब्दावली का नौ बार उच्चारण करें। फिर उसका नौ बार मानसिक जप करें। 5 मिनट 6. अनुचिन्तन करें-- शारीरिक संवेदन--ऋतु जनित संवेदन, रोग-जनित संवेदन, मानसिक संवेदन- सुख-दुःख, अनुकूलता-प्रतिकूलता, भावात्मक संवेदन--विरोधी विचार, विरोधी स्वभाव, । विरोधी रुचि - ये संवेदन मुझे प्रभावित करते हैं, किन्तु इनके प्रभाव को कम करना है। यदि इनका प्रभाव बढ़ा तो मेरी शक्तियां क्षीण होंगी । जितना इनसे कम प्रभावित होऊंगा, उतनी ही मेरी शक्तियां बढ़ेगी, इसलिए सहिष्णुता का विकास मेरे जीवन की सफलता का महामंत्र हैं । _10 मिनट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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