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________________ अनुप्रेक्षाएं 201 है। यह होता है। कभी ऐसा नहीं होता कि सबमें बुद्धि और शक्ति समान हो। तरतमता बनी रहती है, पर अन्ततः आदमी आदमी है यदि यह तथ्य अनुभूत होता है तो आदमी की संवेदनशीलता बढ़ती है और तब समस्याओं का समाधान हो सकता है। सामाजिक स्वास्थ्य का सूत्र है-करुणा। जीवन में करुणा का विकास हो, संवेदनशीलता जागे और मनुष्य प्राणी-जगत् के प्रति करुणार्द्ध बना रहे। ऐसा होने पर ही क्रूरता समाप्त हो सकती है। करुणा का अजस्र स्रोत ___ वर्षा ने विदा ले ली। शरद् का प्रवेश द्वार खुल गया। हरियाली का विस्तार कम हो गया। पथ प्रशस्त हो गए। भगवान् महावीर अस्थिकग्राम से प्रस्थान कर मोराक सन्निवेश पहुंचे। बाहर के उद्यान में ठहरे। उन सन्निवेश में अच्छंदक नामक एक तपस्वी रहते थे। वे ज्योतिष वशीकरण, मंत्र-तंत्र आदि विद्याओं में कुशल थे। अच्छंदक की वहां बहुत प्रसिद्धि थी। जनता उसके चमत्कार से बहुत प्रभावित थी। __उद्यानपालक ने देखा कोई तपस्वी ध्यान किए खड़ा है। उसने दूसरे दिन फिर देखा कि तपस्वी वैसे ही खड़ा है तो उसके मन में श्रद्धा जाग गई। उसने सन्निवेश में लोगों को सूचना दी। लोग आने लगे। भगवान् ने ध्यान और मौन का क्रम नहीं तोड़ा। फिर भी लोग आते और कुछ समय उपासना कर चले जाते । वे भगवान् की ध्यान-मुद्रा पर मुग्ध हो गए। भगवान् की सन्निधि उनके शान्ति का स्रोत बन गई। सनिवेश की जनता का झुकाव भगवान् की ओर देख अच्छंदक विचलित हो उठा। उसने भगवान् को पराजित करने का उपाय सोचा। वह अपने समर्थकों को साथ ले भगवान् के सामने उपस्थित हो गया। भगवान् आत्म-दर्शन की उस गहराई में निमग्न थे, जहां जय-पराजय का अस्तित्व ही नहीं है। अच्छंदक तपस्वी का मन जय-पराजय के झूले में झूल रहा था। वह बोला, तरुण तपस्वी मौन क्यों खड़े हो? यदि तुम ज्ञानी हो तो मेरे प्रश्न का उतर दो। मेरे हाथ में यह तिनका है। यह अभी टूटेगा या नहीं टूटेगा ? इतना करने पर भी भगवान् का ध्यान भंग नहीं हुआ। सिद्धार्थ भगवान् का भक्त था। वह कुछ दिनों से भगवान् की सन्निधि में रह रहा था। अतिशय ज्ञानी था। उसने कहा- अच्छंदक इतने सीधे प्रश्न का उत्तर पाने के लिए भगवान् का ध्यान भंग करने की क्या आवश्यकता है ? इसका सीधा-सा उत्तर है। वह मैं ही बता देता हूं। यह तिनका जड़ है इसमें अपना कर्तृत्व नहीं है। अतः तुम इसे तोड़ना चाहो तो टूट जाएगा और नहीं चाहो तो नहीं टूटेगा। उपस्थित जनता ने कहा, अच्छंदक इतनी सीधी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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