________________
192
अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग होती है। चक्रासन में पूरे शरीर की मांसपेशियों में खिंचाव आता है जिससे वे लचीली और मुलायम होती हैं । गर्दन, कंधों, कटिभाग के जोड़ों में लचक बढ़ती है । चक्रासन वजन को संतुलित बनाने वाला आसन है। . ग्रन्थितंत्र पर प्रभाव- चक्रासन से गोनाड्स, एड्रिनल, थायमस और थायरायड विशेष रूप से प्रभावित होते हैं। स्वास्थ्य केन्द्र और तैजस केन्द्र को प्रभावित करने वाली दो ग्रन्थियां हैं-गोनाड्स और एड्रिमल । आसन करते समय इन ग्रंथियों के क्षेत्र पर दबाव पड़ता है। उसमें आए हुए तनाव विसर्जित होते हैं। ग्रंथियों की उत्तेजना में कमी आने से स्त्रावों के उत्पादन में कमी आएगी। स्रावों की कमी और संतुलन से व्यक्ति में अभय और जागरूकता का विकास होता है। इसी तरह थायमस और थायरायड ग्रन्थियों के संवादी हैं आनन्द केन्द्र और विशुद्धि केन्द्र । इस प्रकार ग्रन्थियों पर चक्रासन का प्रभाव पड़ता है।
लाभ- अंगुलियों, पंजे, हथेलियों, कलाई, कोहनी, बांहें और स्कंध को सुदृढ़ बनाता है। वजन उठाने की शक्ति विकसित होती है। भुजाओं की शक्ति विकसित होती है। स्कंध मजबूत होते हैं। हृदय, पसलियों व सीने को शक्ति मिलती है। हाथों में वृद्धावस्था से कम्पन आदि होने लगते हैं इससे यह अवस्था टल जाती है।
ם
ם
ם
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org