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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग + अनुकंपी-परानुकंपी तंत्र का संतुलन + मस्तिष्क के दाएं और बाएं पटल का संतुलन
हम इस संतुलन को साध पाएं तो अहिंसा का एक प्रायोगिक रूप विश्व के सामने प्रस्तुत होगा। यह संतुलन जितना विस्तार करेगा उतना ही अहिंसा को विश्वव्यापी प्रतिष्ठा मिलेगी। ऐसा होने पर अहिंसा का शुभ और तेजस्वी रूप प्रस्फुटित हो सकेगा तथा चारों तरफ शान्ति ही शान्ति दिखाई पड़ेगी।
4.5 मस्तिष्क नियन्त्रण और जैविक घड़ी मनुष्य का मूड बदलना रहता है। एक दिन में भी वह एक जैसा नहीं रहता। कभी वह शान्त और कभी वह उत्तेजित। कभी प्रसन्न और कभी विषण्ण। जैसे-जैसे भाव चक्र बदलता है, वैसे-वैसे मूड भी बदलता रहता है। मनुष्य की कार्यक्षमता भी बदलती रहती है । एक दिन में उसके कई रूप बन जाते हैं। इसका हेतु क्या है ? इसकी खोज हजारों वर्ष पहले भी की गई थी और आज के वैज्ञानिक भी कर रहे हैं। प्राचीन खोज का निष्कर्ष है- स्वर-चक्र और अर्वाचीन खोज का निष्कर्ष है जैविक घड़ी। मस्तिष्क, प्राणशक्ति, स्वर और काल- इनके योग से जीवन की एक लय बनती है। उसका यौगिक नाम है- स्वरचक्र या स्वरोदय और वैज्ञानिक नाम है- जैविक घड़ी।
मनुष्य का स्वर चन्द्र और सूर्य से प्रभावित होता है। अतः प्रत्येक दिन में और प्रत्येक पक्ष में श्वास की गति भिन्न-भिन्न होती है। सूर्योदय के समय स्वर चक्र का नियम इस प्रकार है
शुक्लपक्ष (सूर्योदय के समय) कृष्णपक्ष (सूर्योदय के समय) तिथि 1. बायां स्वर (इड़ा नाड़ी) 1. दायां स्वर (पिंगला नाड़ी) 2. बायां स्वर
2. दायां स्वर 3. बायां स्वर
3. दायां स्वर 4. दायां स्वर (पिंगला नाड़ी) 4. बायां स्वर (इड़ा नाड़ी) दायां स्वर
5. बायां स्वर दायां स्वर
6. बायां स्वर 7. बायां स्वर
7. दायां स्वर 8. बायां स्वर
8. दायां स्वर 9. बायां स्वर
9. दायां स्वर 10. दायां स्वर
10. बायां स्वर 11. दायां स्वर
11. बायां स्वर 12. दायां स्वर
12. बायां स्वर 13. बायां स्वर
13. दायां स्वर 14. बायां स्वर
14. दायां स्वर पूर्णिमा 15. बायां स्वर
15. दायां स्वर
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