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________________ आत्मविद्या : क्षत्रियों की देन हुई कि आगे चलकर 'प्रथम जिन' उनका एक नाम बन गया ।' श्रीमद्भागवत से भी इसी बात की पुष्टि होती है। वहां बताया गया है कि वासुदेव ने आठवां अवतार नाभि और मेरुदेवी के वहां धारण किया । वे ऋषभ रूप में अवतरित हुए और उन्होंने सब आश्रमों द्वारा नमस्कृत मार्ग दिखलाया । ' इसीलिए ऋषभ को मोक्षधर्म की विवक्षा से 'वासुदेवांश' कहा गया । " 1 ऋषभ के सौ पुत्र थे । वे सब के सब ब्रह्मविद्या के पारगामी थे । ' उनके नौ पुत्रों को 'आत्मविद्या विशारद' भी कहा गया है ।" उनका ज्येष्ठ पुत्र भरत महायोगी था । ' जम्बुद्वीपप्रज्ञप्ति, कल्पसूत्र और श्रीमद्भागवत के संदर्भ में हम आत्मविद्या के प्रथम पुरुष भगवान् ऋषभ को पाते हैं । कोई आश्चर्य नहीं कि उपनिषद्कारों ने ऋषभ को ही ब्रह्मा कहा हो । ब्रह्मा का दूसरा नाम हिरण्यगर्भ है । महाभारत के अनुसार हिरण्यगर्भ ही योग का पुरातन विद्वान् है, कोई दूसरा नहीं । श्रीमद्भागवत में ऋषभ को योगेश्वर कहा गया है ।' उन्होंने नाना योग-चर्याओं का चरण किया था । हठयोग प्रदीपिका में भगवान् ऋषभ को हठयोग-विद्या के उपदेष्टा के रूप में नमस्कार किया गया है ।" जैन आचार्य भी उन्हें योग विद्या के १. कल्पसूत्र, सू० १९४ : उसभेणं कोसलिए कासवगुत्ते णं, तस्स णं पंच नामधिज्जा जहा --- उसमे इ वा पढमराया इ वा पढमभिक्खाचरे इ वा पढमतित्थकरे इ वा । २. श्रीमद्भागवत, १।३।१३ : अष्टमे मेरुदेव्यां तु नाभेजति उरुक्रमः । दर्शयन् वर्त्म धीराणां सर्वाश्रमनमस्कृतम् ॥ ३. वही, ११।२।१६; तमाहुर्वासुदेवांशं, मोक्षधर्मविवक्षया । ४. वही, ११।२।१६; अवतीर्णः सुतशतं तस्यासीद् ब्रह्मपारगम् । ५. वही, ११।५।२० : ७६ Jain Education International नवाभवन् महाभागा, मुनयो ह्यर्थशंसिनः । श्रमणा वातरशनाः, आत्मविद्याविशारदाः ॥ ६. वही, ५।४।६; येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठः श्रेष्ठगुणः आसीत् । ७. महाभारत, शान्तिपर्व, ३४९।६५; हिरण्यगर्भो योगस्य, वेत्ता नान्यः पुरातनः । ८. श्रीमद्भागवत, ५।४।३ : भगवान् ऋषभदेवो योगेश्वरः । ६. श्रीमद्भागत, ५।५।२५ : नानायोगचर्याचरणो भगवान् कैवल्यपतिॠषभः । हठयोग प्रदीपिका : श्री आदिनाथय नमोस्तु तस्मै, येनोपदिष्टा हठयोगविद्या | १०. For Private & Personal Use Only एवमाहिज्जंति, तं पढमजिणे इ वा www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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