________________
श्रमण परम्परा की एकसूत्रता और उसके हेतु ब्राह्मण भी० । वैश्य भी० । शुद्र भी ।
'वाशिष्ठ ! इन्हीं चार मण्डलों से उन्हीं प्राणियों का दूसरों का नहीं, धर्म से श्रेष्ठ है, इस जन्म में भी और पर जन्म में भी ।"
।
उत्तराध्ययन के प्रमुख पात्रों में चारों वर्णों से दीक्षित मुनि थे । नमि राजर्षि, संजय, मृगापुत्र आदि क्षत्रिय थे । कपिल, जयघोष, विजयघोष, भृगु आदि ब्राह्मण थे । अनाथी, समुद्रपाल आदि वैश्य थे । हरिकेशबल, चित्रसंभूत आदि चाण्डाल थे ।
१. दीघनिकाय, ३१३, पृ० २४५ ।
५६
श्रमण- मण्डल की उत्पत्ति हुई । अधर्म नहीं । धर्म ही मनुष्यों में
श्रमणों की यह समता अहिंसा पर आधारित थी । इस प्रकार समता और अहिंसा ये दोनों तत्त्व समण ( या श्रमण ) संस्कृति के मूल बीज थे ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org