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२२
संस्कृति के दो प्रवाह
चंपक
इसी प्रकार व्यन्तर देवों के भी आठ चैत्यवृक्ष बतलाए गए हैंपिशाच
कदम्ब भूत-~
तुलसी यक्ष
बरगद राक्षस---
खट्वांग किन्नर
अशोक किंपुरुषनाग या महोरग- नाग गन्धर्व
तिन्दुक महात्मा बुद्ध के बोधि-वृक्ष का महत्त्व आरम्भ से हो रहा है। जनों के २४ तीर्थङ्करों के २४ ज्ञान-वृक्ष माने गए हैं
तीर्थकर ज्ञान-वृक्ष तीर्थकर मान-वृक्ष १. वृषभ- न्यग्रोध १३. विमल-- जम्बू २. अजित-- सप्तपर्ण १४. अनन्त-- अश्वत्थ ३. संभव- शाल
१५. धर्म- दधिपर्ण ४. अभिनन्दन -प्रियाल १६. शांति-- नंदि ५. सुमति- प्रियंगु १७. कुन्थु- तिलक ६. पद्मप्रभ- छत्राम १८. अर
आम्र ७. सुपार्श्व- सिरीस १६. मल्ली
अशोक ८. चन्द्रप्रभ- नाग
२०. मुनिसुव्रत- चंपक ६. सुविधि- मल्ली २१. नमि
बकुल १०. शीतल-- प्लक्ष
२२. नेमि-- वेतस ११. श्रेयांस- तिदुक २३. पाश्व-- धातकी १२. वासुपूज्य-पाटल
२४. महावीर- शाल सिन्दूर भी आर्य-पूर्व नाग जाति की वस्तु है। श्रमण साहित्य में नदी, वक्ष आदि का उत्सव मनाने के अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि आचार्य क्षितिमोहन सेन ने जिन वस्तुओं को वेदबाह्य या अवैदिक कहा है. उनका महत्त्व या महत्त्वपूर्ण उल्लेख श्रमण परम्परा के साहित्य में मिलता है। उनके आधार पर इस निष्कर्ष पर १. स्थानांग, ८.११७ । २. समवायांग, समवाय १५७ । ३. राजप्रश्नीय, पृ० २८४ ।
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