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________________ १६४ संस्कृति के दो प्रवाह आसन के अर्थ में 'स्थान' शब्द का प्रयोग मिलता है। आसन का अर्थ है 'बैठना'। स्थान का अर्थ है 'गति की निवृत्ति'। स्थिरता आसन का महत्त्वपूर्ण स्वरूप है। वह खड़े रह कर, बैठकर, और लेटकर-तीनों प्रकार से की जा सकती है। इस दृष्टि से आसन की अपेक्षा 'स्थान' शब्द अधिक व्यापक है। स्थानयोग के तीन प्रकार हैं-(१) ऊर्ध्व-स्थान, (२) निषीदनस्थान और (३) शयन-स्थान ।' ऊर्ध्व स्थानयोग खड़े रह कर किए जाने वाले स्थानों को 'उर्ध्व स्थानयोग' कहा जाता है। आचार्य शिवकोटि के अनुसार ऊर्ध्वस्थान के सात प्रकार हैं१. साधारण--प्रमाजित खम्भे आदि के सहारे निश्चल होकर खड़े रहना। २. सविचार-जहां स्थित हो, वहां से दूसरे स्थान में जाकर एक प्रहर, एक दिन आदि निश्चित-काल तक निश्चल होकर खड़े रहना। ३. सनिरुद्ध-जहां स्थित हो, वहीं निश्चल होकर खड़े रहना। ४. व्युत्सर्ग:-कायोत्सर्ग । ५. समपाद-पैरों को समणि में स्थापित कर (सटा कर) खड़े रहना। ६. एकपाद--एक पैर पर खड़े रहना। १. ओघनियुक्तिभाष्य, गाथा १५२ : उड्ढनिसीयतुयट्टणठाणं तिविहं तु होइ नायव्वं । २. मूलाराधना, ३।२२३ : साधारणं सविचारं सणिरुद्ध तहेव वोसट् ठं । समपादमेगपादं, गिद्धोलीणं च ठाणाणि । ३. मूलाराधना, ३।२२३, विजयोदया, वृत्ति : साधारणं-प्रमृष्टस्तंभादिकमुपाश्रित्य स्थानम् । ४. वही, ३।२२३, विजयोदया, वृत्ति : सविचारं---ससंक्रमं पूर्वस्थानात् स्थानान्तरे गत्वा प्रहरदिवसादि परिच्छेदेनावस्थानमित्यर्थः ।। ५. वही, २।२२३, विजयोदया, वृत्ति : सणिरुद्ध निश्चलमवस्थानम् ।। ६. वही, ३।२२३, विजयोदया, वृत्ति : वोस?--कायोत्सर्गम् । ७. वही, ३।२२३, विजयोदया, वृत्ति : समपादो-समौ पादौ कृत्वा स्थानम् । ८. वही, ३।२२३, विजयोदया, वृत्ति : एकपादं-एकेन पादेन अवस्थानम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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