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२२. योग
जैन योग की अनेक शाखाएं हैं- दर्शन-योग, ज्ञान-योग, चारित्रयोग, तपो-योग, स्वाध्याय - योग, ध्यान-योग, भावना-योग, स्थान- योग, गमन-योग और आतापना - योग ।
दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तपो-योग की चर्चा साधना के प्रकरण में की जा चुकी है । स्वाध्याय-योग ज्ञान-योग का ही एक प्रकार है । स्वाध्याय और ध्यान-योग का समावेश तपो - योग में भी होता है । इस प्रकरण में हम भावना, स्थान, गमन और आतापना - इन योगों की चर्चा करेंगे |
भावना-योग
साधना के प्रारम्भ में प्राचीन जीवन का विघटन और नए जीवन का निर्माण करना होता है । इस प्रक्रिया में भावना का बहुत बड़ा उपयोग है । जिन चेष्टाओं व संकल्पों द्वारा मानसिक विचारों को भावित या वासित किया जाता है, उन्हें 'भावना' कहा जाता है ।' महर्षि पतञ्जलि ने भावना और जप में अभेद माना है ।"
भावना के अनेक प्रकार हैं । ज्ञान, दर्शन, चारित्र, भक्ति आदि जिनजिन चेष्टाओं व अभ्यासों से मानस को भावित किया जाता है, वे सब भावनाएं हैं अर्थात् भावनाएं असंख्य हैं । फिर भी उनके कई वर्गीकरण मिलते हैं। पांच महाव्रत की पच्चीस भावनाएं हैं। धर्म और शुक्ल ध्यान की चार-चार अनुप्रेक्षाएं हैं ।" वे मिलित रूप में आठ भावनाएं हैं । ये दोनों आगमकालीन वर्गीकरण हैं । तत्त्वार्थ सूत्र में बारह भावनाओं का एक वर्गीकरण' और दूसरा वर्गीकरण चार भावनाओं का प्राप्त होता है ।" इन दोनों वर्गीकरणों की सोलह भावनाएं प्रकीर्ण रूप में आगमों में
१. पासणाहचरियं, पृ० ४६० : भाविज्जइ वासिज्जइ जीए जीवो विसुद्धचेट्टाए सा भावणत्ति वुच्चइ |
२. पातञ्जल योग, सूत्र १२८ : तज्जपस्तदर्थ भावनम् ।
३. पासणाहचरियं पृ० ४६० ।
४. उत्तराध्ययन, १३।१७ ।
५. स्थानांग, ४६८,७२ ।
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६. तत्त्वार्थ, ६।७ ।
७.
वही, ७६ ।
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