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साधन ज्ञान, दर्शन और चारित्र ही हैं ।" भगवान् पार्श्व के भगवान् महावीर ने अपने अनुमति दी ।
to हर्मन जेकोब का यह मत है कि भगवान् महावीर ने अचेलकता या नग्नत्व का आचार आजीवक आचार्य गोशालक से ग्रहण किया । किन्तु यह संदिग्ध है । भगवान् महावीर के काल में और उनसे पूर्व भी नग्न साधुओं के अनेक सम्प्रदाय थे । भगवान् महावीर ने अचेलकता को किसी से प्रभावित होकर अपनाया या अपनी स्वतन्त्र बुद्धि से ? इस प्रश्न के समाधान का कोई निश्चित स्रोत प्राप्त नहीं है, किन्तु इतना निश्चित है कि महावीर दीक्षित हुए तब सचेल थे, बाद में अचेल हो गए। भगवान् ने अपने शिष्यों के लिए भी अचेल आचार की व्यवस्था की, किन्तु उनकी अचेल व्यवस्था दूसरे दूसरे नग्न साधुओं की भांति ऐकान्तिक आग्रहपूर्ण नहीं थी । गौतम ने केशी से जो कहा, उससे यह स्वयं सिद्ध है ।
संस्कृति के दो प्रवाह
शिष्य बहुमूल्य और रंगीन वस्त्र रखते थे । शिष्यों को अल्पमूल्य और श्वेत वस्त्र रखने की
जो निर्ग्रन्थ निर्वस्त्र रहने में समर्थ थे, उनके लिए पूर्णतः अचेल (निर्वस्त्र ) रहने की व्यवस्था थी और जो निर्ग्रन्थ वैसा करने में समर्थ नहीं थे, उनके लिए सीमित अर्थ में अचेल (अल्पमूल्य और श्वेत वस्त्रधारी ) रहने की व्यवस्था थी ।
भगवान् पार्श्व के शिष्य भगवान् महावीर के तीर्थ में इसीलिए खप सके कि भगवान् महावोर ने अपने तीर्थ में सचेल और अचेल – इन दोनों व्यवस्थाओं को मान्यता दी थी। इस सचेल और अचेल के प्रश्न पर ही निर्ग्रन्थ संघ श्वेताम्बर और दिगम्बर- इन दो शाखाओं में विभक्त हुआ था । श्वेताम्बर साहित्य के अनुसार जिनकल्पी साधु वस्त्र नहीं रखते थे और स्थविरकल्पी साधु वस्त्र रखते थे । दिगम्बर साहित्य के अनुसार सब साधु वस्त्र नहीं रखते थे । इस विषय पर पार्श्ववर्ती परम्पराओं का भी विलोडन करना अपेक्षित है ।
पूरणकश्यप ने समस्त जीवों का वर्गीकरण कर छह अभिजातियां निश्चित की थीं । उसमें तीसरी - लोहित्याभिजाति-में एक शाटक रखने
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१. उत्तराध्ययन, २३।२६-३३ ।
२. दी सेक्रेड बुक ऑफ दी ईस्ट, भाग ४५, पृ० ३२ :
It is probable that he borrowed them from the Akelakas or āgīvikas, the followers of Gosāla.''
३. अंगुत्तरनिकाय, ६६३, छलभिजातिसुत्त, भाग ३, पृ० ८६ ।
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