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पार्श्व और महावीर का शासन-भेद
१७७ स्वीकार कराया जाता है । छेद का अर्थ 'विभाग' है। भगवान् महावीर ने भगवान पार्श्व के निविभाग सामायिक चारित्र को विभागात्मक सामायिक चारित्र बना दिया और वही छेदोपस्थापनीय के नाम से प्रचलित हुआ। भगवान् ने चारित्र के तेरह मुख्य विभाग किए थे। पूज्यपाद ने भगवान् महावीर को पूर्व तीर्थङ्करों द्वारा अनुपदिष्ट तेरह प्रकार के चारित्रउपदेष्टा के रूप में नमस्कार किया है
तिनः सत्तमगुप्तयस्तनुमनोभाषानिमित्तोवयाः, . पंचेर्यादि समाभयाः समितयः पंचवतानीत्यपि । चारित्रोपहितं प्रयोदशतयं पूर्व न दिष्टं पर
राचारं परमेष्ठिनो जिनपतेर्वीरान् नमामो वयम् ॥ यह विचित्र संयोग की बात है कि आचार्य भिक्षु ने भी तेरापंथ की व्याख्या इन्हीं तेरह (पांच महाव्रत, पांच समिति और तीन गुप्ति) व्रतों के आधार पर की थी। भगवती से ज्ञात होता है कि जो चातुर्याम-धर्म का पालन करते थे, उन मुनियों के चारित्र को 'सामायिक' कहा जाता था और जो मुनि चातुर्याम-धर्म की प्राचीन परम्परा को छोड़ कर पंचयाम-धर्म में प्रवजित हुए उनके चारित्र को 'छदोपस्थापनीय' कहा गया।'
भगवान् महावीर ने भगवान् पार्श्व की परम्परा का सम्मान करने अथवा अपने निरूपण के साथ उसका सामंजस्य बिठाने के लिए दोनों व्यवस्थाएं की प्रारम्भ में अल्पकालीन निविभाग (सामायिक) चारित्र को मान्यता दी, दीर्घकाल के लिए विभागात्मक (छेदोपस्थापनीय) चारित्र की व्यवस्था की। १. चारित्रभक्ति, ७। २. भिक्षुजशरसायन, ७७ : पंच महाव्रत पालता, शुद्धि सुमति सुहावै हो । तीन गुप्त तीखी तरै, भल आतम भावे हो । चित्त तूं तेरा ही चाहवै हो । ३. भगवती, २५१७७८६, गाथा १,२ :
सामाइयंमि उ कए, चाउज्जामं अणुत्तरं धम्म । ति विहेणं फासयंतो, सामाइयं संजमो स खलु ॥ छेत्तूण उ परियागं, पोराणं जो ठवेइ अप्पाणं । धम्ममि पंच जामे, छेदोवट्ठावणो स खलु ॥ ४. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा १२६८ । ५. वही, गाथा १२१०४ ।
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