________________
जैनधर्म का ह्रासकाल
१६३ शंकराचार्य के सम्बन्ध में घटित होता है। उन्होंने लिखा है
___ 'भारतीय जीवन के निर्माण में इतनी देन देकर बौद्ध-धर्म भारत से लुप्त हो गया,इससे किसी भी सहृदय व्यक्ति को खेद हुए बिना नहीं रहेगा। उसके लुप्त होने के क्या कारण थे, इसके बारे में कई भ्रान्तिमूलक धारणाएं फैली हैं। कहा जाता है, शंकराचार्य ने बौद्ध धर्म को भारत से निकाल बाहर किया। किंतु, शंकराचार्य के समय आठवीं सदी में भारत में बौद्ध धर्म लुप्त नहीं, प्रबल होता देखा जाता है। यह नालन्दा के उत्कर्ष और विक्रमशिला की स्थापना का समय था। आठवीं सदी में ही पालों जैसा शक्तिशाली बौद्ध राज-वंश स्थापित हुआ था। यही समय है, जबकि नालन्दा ने शान्तरक्षित, धर्मोत्तर जैसे प्रकाण्ड दार्शनिक पैदा किए। तंत्रमत के सार्वजनिक प्रचार के कारण भीतर में निर्बलताएं भले ही बढ़ रही हों, किन्तु जहां तक विहारों और अनुयायियों की संख्या का सम्बन्ध है, शंकराचार्य के चार सदियों बाद बारहवीं सदी के अन्त तक बौद्धों का ह्रास नहीं हुआ था । उत्तरी भारत का शक्तिशाली गहड़वार-वंश केवल ब्राह्मण धर्म का ही परिपोषक नहीं था, बल्कि वह बौद्धों का भी सहायक था। गहड़वार रानी कुमारदेवी ने सारनाथ में 'धर्मचक्र महाविहार' की स्थापना और गोविन्दचन्द्र ने 'जेतवन महाविहार' को कई गांव दिए थे। अन्तिम गहडवार राजा जयचन्द के भी दीक्षा-गुरु जगन्मिजानन्द (मित्रयोगी) एक महान बौद्ध सन्त थे, जिन्होंने कि तिब्बत में अपने शिष्य जयचन्द को पत्र लिखा था, जो आज भी 'चन्द्रराज-लेख' के नाम से तिब्बती भाषा में उपलब्ध है। गहड़वारों के पूर्वी पड़ोसी पाल थे, जो अंतिम क्षण तक बौद्ध रहे । दक्षिण में कोंकण का शिलाहार-वंश भी बौद्ध था। दूसरे राज्यों में भी बौद्ध काफी संख्या में थे । स्वयं शंकराचार्य की जन्मभूमि केरल भी बौद्ध-शिक्षा का बहिष्कार नहीं कर पाई थी। उसने तो बल्कि बौद्धों के 'मंजुश्री मूलकल्प' की रक्षा करते हुए हमारे पास तक पहुंचाया। वस्तुतः बौद्ध धर्म को भारत से निकालने का श्रेय या अयश किसी शंकराचार्य को नहीं है। ___फिर बौद्ध धर्म भारत से नष्ट कैसे हुआ ? तुर्कों का प्रहार जरूर इसमें एक मुख्य कारण बना । मुसलमानों को भारत से बाहर मध्य-एशिया में जफरशां और वक्षु की उपत्यकाओं, फर्गाना और बालीक की भूमियों में बौद्धों का मुकाबिला करना पड़ा। वैसा संघर्ष इन्हें ईरान और रोम के साथ भी नहीं करना पड़ा था। घुटे चेहरे और रंगे कपड़े वाले बुतपरस्त (बुद्ध-परस्त) भिक्षुओं से वे पहले ही परिचित थे । उन्होंने भारत
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org