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________________ जैन धर्म : हिन्दुस्तान के विभिन्न अंचलों में १५५ राज्य उनके धर्मोपदेश से बहुत प्रभावित थे। वाराणसी का अलक्ष्य राजा भी भगवान महावीर के पास प्रवजित हुआ था। उत्तराध्ययन में प्रवजित होने वाले राजाओं की सूची में काशीराज के प्रवजित होने का उल्लेख है, किन्तु उनका नाम यहां प्राप्त नहीं है । स्थानांग में भगवान् महावीर के पास प्रवजित आठ राजाओं के नाम ये हैं १. वीराङ्गक ५. सेय (आम्रकल्पा का स्वामी) २. वीरयशा ६. शिव (हस्तिनापुर का राजा) ३. संजय ७. उद्रायण (सिन्धु-सौवीर का राजा) और ४. ऐणेयक (प्रदेशी का ८. शंख (काशीवर्धन)।' सामन्त राजा) इनमें शंख को 'काशी का बढ़ाने वाला' कहा है। संभव है उत्तराध्ययन में यही काशीराज के नाम से उल्लिखित हो। विपाक के अनुसार काशीराज अलक भगवान् महावीर के पास प्रवजित हुए थे। संभव है ये सब एक ही व्यक्ति के अनेक नाम हों। इस प्रकार और भी अनेक राजा भगवान् महावीर के पास प्रवजित हुए। भगवान् महावीर के बाद मथुरा जैन धर्म का प्रमुख अंग बन गया था। मथुरा ___ डा० राधाकुमुद मुकर्जी ने उज्जैन के बाद दूसरा केन्द्र मथुरा को माना है। उन्होंने लिखा है-"जैनों का दूसरा केन्द्र मथुरा में बन रहा था। यहां बहुसंख्यक अभिलेख मिले हैं। उनमें फूलते-फलते जैन-संघ के अस्तित्व का प्रभाव मिलता है। इस संघ में महावीर और उनके पूर्ववर्ती जिनों की मूर्तियां और चैत्यों की स्थापना दान द्वारा की गई थी। उनसे यह भी ज्ञात होता है कि मथुरा-संघ स्पष्ट रूप से श्वेताम्बर था और छोटे-छोटे गण, कुल और शाखाओं में बंटा हुआ था। इनमें सबसे पुराना लेख कनिष्क के वें वर्ष (लगभग ८७ ई०) का है और इसमें कोटिक गण के आचार्य नागनन्दी की प्रेरणा से जैन उपासिका विकटा द्वारा मूर्ति की प्रतिष्ठा का उल्लेख है। स्थविरावली के अनुसार इस गण की स्थापना स्थविर सुस्थित ने की थी जो महावीर के ३१३ वर्ष बाद अर्थात १५४ ई० पूर्व में दिवंगत हुए। इस प्रकार इस लेख से श्वेताम्बर सम्प्रदाय की प्राचीनता द्वितीय शती ई० पूर्व० तक जाती है। मथुरा के कुछ लेखों में १. स्थानांग, ८१४१ । २. तीर्थकर महावीर, भाग २, पृ० ५०५-६६४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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