________________
१६. जैन धर्म : हिन्दुस्तान के विविध अंचलों में
विहार
भगवान् महावीर के समय में उनका धर्म प्रजा के अतिरिक्त अनेक राजाओं द्वारा भी स्वीकृत था। वज्जियों के शक्तिशाली गणतंत्र के प्रमुख राजा चेटक भगवान् महावीर के श्रावक थे । वे भगवान् पार्श्व की परम्परा को मान्य करते थे। वृज्जी गणतंत्र की राजधानी 'वैशाली' थी। वहां जैन धर्म बहुत प्रभावशाली था।
मगध सम्राट श्रेणिक प्रारम्भ में बुद्ध का अनुयायी था।' अनाथी मुनि के सम्पर्क में आने के पश्चात् वह निर्ग्रन्थ धर्म का अनुयायी हो गया था। इसका विशद वर्णन उत्तराध्ययन के बीसवें अध्ययन में है । श्रेणिक की रानी चेलणा चेटक की पुत्री थी। यह श्रेणिक को निर्ग्रन्थ धर्म का अनुयायी बनाने का सतत प्रयत्न करती थी और अन्त में उसका प्रयत्न सफल हो गया। मगध में जैन धर्म प्रभावशाली था। श्रेणिक का पुत्र कूणिक भी जैन था। जैन आगमों में महावीर के अनेक प्रसंग हैं।
मगध शासक शिशुनाग वंश के बाद नन्द वंश का प्रभुत्व बढ़ा। प्रसिद्ध इतिहासज्ञ रायचौधरी के अनुसार नन्द वंश का राज्य बम्बई के सुदूर दक्षिण गोदावरी तक फैला हुआ था। उस समय मगध और कलिंग में जैन धर्म का प्रभुत्व था ही, परन्तु अन्यान्य प्रदेशों में भी उसका प्रभत्व बढ़ रहा था।
डा० राधाकुमुद मुकर्जी के अनुसार "जैन-ग्रन्थों को भी नौ नन्दों का परिचय है (आवश्यक सूत्र, पृ० ६९३ नवमे नन्दे) । उनमें भी नन्द को १. उपदेशमाला, गाथा ६२ :
वेसालीए पुरीए सिरिपासजिणेससासणसणाहो । हेहयकुलसंभूओ चेडगनामा निवो आसि ।। २. दीघनिकायो (पढमो भागो), पृ० १३५: समणं खलु भो गोतम राजा मागधो सेनियो बिम्बिसारो सपुत्तो सभारियो सपरिसो सामच्चो पाणे हि सरणं गतो। ३. स्टडीज इन इन्डियन एन्टीक्वीटीज, पृ० २१५ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org