________________
१४५
विदेशों में जैन धर्म
भगवान् महावीर वज्रभूमि, सुम्हभूमि दृढभूमि आदि अनेक अनार्यप्रदेशों में गए थे। वे बंगाल की पूर्वीय सीमा तक भी गए थे।
उत्तर-पश्चिम सीमा-प्रान्त एवं अफगानिस्तान में विपुल संख्या में जैन श्रमण विहार करते थे।
जैन श्रावक समुद्र पार जाते थे। उनकी समुद्र-यात्रा और विदेशव्यापार के अनेक प्रमाण मिलते हैं। लंका में जैन श्रावक थे, इसका उल्लेख बौद्ध साहित्य में भी मिलता है । महावंश के अनुसार ई० पूर्व ४३० में जब अनुराधापुर बसा, तब जैन-श्रावक वहां विद्यमान थे। वहां अनुराधापुर के राजा पाण्डुकाभय ने ज्योतिय निग्गंठ के लिए घर बनवाया। उसी स्थान पर गिरी नामक निग्गंठ रहते थे । राजा पाण्डुकाभय ने कुम्भण्ड निग्गंठ के लिए एक देवालय बनवाया था।'
जैन श्रमण भी सुदूर देशों तक विहार करते थे। ई० पू० २५ में पाण्ड्य राजा ने अगस्टस् सीजर के दरबार में दूत भेजे थे। उनके साथ श्रमण भी यूनान गए थे।
जी० एफ० मूर के अनुसार ईसा से पूर्व ईराक, शाम और फिलिस्तीन में जैन मुनि और बौद्ध भिक्षु सैकड़ों की संख्या में चारों ओर फैले हुए थे। पश्चिमी एशिया, मिश्र, यूनान और इथियोपिया के पहाड़ों और जंगलों में उन दिनों अगणित भारतीय साधु रहते थे, जो अपने त्याग और अपनी विद्या के लिए प्रसिद्ध थे। ये साधु वस्त्रों तक का परित्याग किए हुए थे।
इस्लाम धर्म के कलन्दरी तबके पर जैन धर्म का काफी प्रभाव पड़ा था। कलन्दर चार नियमों का पालन करते थे-साधता, शुद्धता, सत्यता और दरिद्रता । वे अहिंसा पर अखण्ड विश्वास रखते थे।
__यूनानी लेखक मिस्र, एबीसीनिया, इथ्यूपिया में दिगम्बर मुनियों का अस्तित्व बताते हैं।'
आर्द्र देश का राजकुमार आर्द्र भगवान महावीर के संघ में प्रवजित १. (क) जरनल ऑफ दी रायल एशियाटिक सोसाइटी, जनवरी १८८५ ।
(ख) एन्शियन्ट ज्योग्रफी ऑफ इन्डिया, पृ० ६१७ । २. महावंश, परिच्छेद १०, पृ० ५५ । ३. इण्डियन हिस्टोरीकल क्वाटर्ली, भाग २, पृ० २६३ । ४. हुकमचन्द अभिनन्दन ग्रंथ, पृ० ३७४ । ५. वही, पृ० ३७४। ६. एशियाटिक रिसर्चेज, भाग ३, पृ० ६। ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org