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________________ श्रमण और वैदिक परम्परा का पौर्वापर्यं भगवान् पार्श्व का व्यक्तित्व ऐतिहासिक प्रमाणित होने पर यह प्रश्न उठा - क्या पार्श्व ही जैन धर्म के प्रवर्तक थे ? इसके उत्तर में डॉ० हर्मन कोबी ने लिखा है किन्तु यह प्रमाणित करने के लिए कोई आधार नहीं है कि पार्श्व जैन धर्म के संस्थापक थे । जैन परम्परा ऋषभ को प्रथम तीर्थङ्कर (आद्य संस्थापक ) बताने में सर्वसम्मत है । परम्परा में कुछ ऐतिहासिकता भी हो सकती है जो उन्हें प्रथम तीर्थङ्कर मान्य करती है ।" डा० राधाकृष्णन ने भी इसी अभिमत की पुष्टि की है । उन्होंने लिखा है- 'जैन परम्परा के अनुसार जैन धर्म का प्रवर्तन ऋषभदेव ने किया था । वे अनेक शताब्दियों पहले हो चुके हैं । यह असंदिग्ध रूप से कहा जा सकता है कि जैन धर्म का अस्तित्व वर्द्धमान और पार्श्व से पहले भी था । " अरिष्टनेमि अरिष्टनेमि बाईसवें तीर्थंकर थे । उन्हें अभी तक पूर्णतः ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं माना गया है, किन्तु वासुदेव कृष्ण को यदि ऐतिहासिक व्यक्ति माना जाए तो अरिष्टनेमि को ऐतिहासिक न मानने का कोई कारण नहीं है । कौरव, पाण्डव, जरासंध, द्वारका, यदुवंश, अन्धक, वृष्णि आदि का अस्तित्व नहीं मानने का कोई कारण नहीं है । पौराणिक विस्तार व कल्पना को स्वीकार न करें, फिर भी ये कुछ मूलभूत तथ्य शेष रह जाते हैं । ऋषिभाषित (इसिभासिय) में ४५ प्रत्येक बुद्धों के द्वारा निरूपित ४५ अध्ययन हैं। उनमें २० प्रत्येक बुद्ध भगवान् अरिष्टनेमि के तीर्थंकाल में हुए थे । उनके द्वारा निरूपित अध्ययन अरिष्टनेमि के अस्तित्व के स्वयंभू प्रमाण हैं । ऋग्वेद में 'अरिष्टनेमि' शब्द चार बार आया है ।" 'स्वस्ति 1. Indian Antiquary, Vol. IX, p. 163. "But there is nothing to prove that Pārśwa was the founder of Jainism. Jaina tradition is unanimous in making Rṣabha, the first Tirthankara, as its founder. There may be something historical in the tradition which makes him the first Tirthankara". 2. Indian Philosophy, Vol. I, p. 287. ३. इसि भासियाई, पृ० २६७, परिशिष्ट १, गाथा १ : पत्तेयबुद्धमिसिणो वीसं तित्थ अरिट्ठमिस्स । ४. ऋग्वेद, ११४८६६; ११२४ | १८०।१० ३|४|५३ | १७; १०।१२।१७८।१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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