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संस्कृति के दो प्रवाह
ब्रह्म है। वही परमार्थ-सत्य है। शेष सब उसी से उत्पन्न है और उसी में विलीन हो जाता है। अत: बाह्य जगत् असत्य है-परमार्थ-सत्य नहीं है। जो परमार्थ-सत्य है, वह 'एक' है। जो नानात्व है, वह उसी में से उत्पन्न है, अतः वस्तुत: 'एक' ही सत्य है। जो अनेक है, वह सत्य नहीं है। बौद्ध दर्शन और विश्व
बौद्ध धर्म की दो प्रमुख शाखाएं हैं-हीनयान और महायान । हीनयान की दो शाखाएं हैं-वैभाषिक और सौत्रान्तिक-सर्वास्तिवादी । वे जगत् के अस्तित्व को सत्य मानती हैं।
___ महायान की दो शाखाएं-योगाचार और माध्यमिक----जगत् के अस्तित्व को मिथ्या मानती हैं।
वैभाषिक और सौत्रान्तिक की दृष्टि में द्रव्य का अस्तित्व आत्मकेन्द्रित है । वह किसी एक ही केन्द्र से प्रवाहित नहीं हो रहा है। योगाचार और माध्यमिक की दृष्टि दार्शनिक युग में विकसित हुई थी। इसीलिए वह तर्कहीन ब्रह्म को मान्य नहीं कर सकी। वह औपनिषदिक चिन्तन का अन्तिम रूप बनी। औपनिषदिक चिन्तन था कि ब्रह्म सत्य है और नानात्व असत्य । योगाचार और माध्यमिक शाखाओं का चिन्तन रहा कि सब कुछ असत्य है। जैन दर्शन और विश्व
जैनदृष्टि इन दोनों धाराओं से भिन्न रही। आगम और दार्शनिक -दोनों युगों में उसका रूप-परिवर्तन नहीं हुआ। उसका अपना अभिमत था कि एकत्व भी सत्य है और नानात्व भी सत्य है। अस्तित्व की दृष्टि से सब द्रव्य एक हैं, अतः एकत्व भी सत्य है। उपयोगिता की दृष्टि से द्रव्य अनेक हैं, अतः नानात्व भी सत्य है। जैन आचार्यों ने एकत्व की व्याख्या संग्रह नय के आधार पर की और नानात्व की व्याख्या व्यवहार नय के आधार पर । एकत्व और नानात्व की व्याख्या जहां निरपेक्ष होती है, वहां सत्य का दर्शन खण्डित हो जाता है। निरपेक्ष एकत्व भी सत्य नहीं है और निरपेक्ष नानात्व भी सत्य नहीं है। दोनों का सापेक्ष दर्शन ही सत्य का पूर्ण दर्शन है।
जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य आत्म-केन्द्रित हैं। उनके अस्तित्व का स्रोत किसी एक ही केन्द्र से प्रवहमान नहीं है । चेतन का अस्तित्व जितना स्वतन्त्र और वास्तविक है, उतना ही स्वतन्त्र और वास्तविक अचेतन का
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