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________________ श्रामण्य और कायक्लेश ११३ वस्त्र के विषय में भी महावीर का दृष्टिकोण मध्यममार्गी था। उन्होंने सचेल और अचेल-इन दोनों साधना-पद्धतियों को मान्यता दी। (१) कई मुनि जीवन पर्यन्त सचेल रहते थे। (२) कई मुनि साधना के प्रारम्भ काल में सचेल रहते और उसके परिपक्व होने पर अचेल हो जाते। (३) कई मुनि कभी सचेल रहते, कभी अचेल । हेमन्त में सचेल रहते और ग्रीष्म में अचेल हो जाते ।' वस्त्र मिलने पर सचेल रहते, न मिलने पर अचेल ।' महावीर ने साधुओं को गणों में संगठित भी किया और अकेले रहने की व्यवस्था भी दी। उन्होंने गण में रहने वालों के लिए सेवा और सहयोग को प्रोत्साहन दिया और अकेले रहने वालों के लिए सेवा या सहयोग न लेने की व्यवस्था दी। जो मण्डली-भोजन चाहते थे, उनके लिए वैसी व्यवस्था की और मण्डली-भोजन के प्रत्याख्यान को भी महत्त्व दिया। इस प्रकार साधना की व्यवस्था में उनका दृष्टिकोण अनेकान्तस्पर्शी रहा। ऊपर कुछ उदाहरण प्रस्तुत किए हैं जो महावीर के मध्यम-मार्गी दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हैं। महावीर का झुकाव यदि कायक्लेश की ओर होता तो वे यह कभी नहीं कहते कि जो तप और नियम से भ्रष्ट हैं, वे चिरकाल तक अपने शरीर को क्लेश देकर भी संसार का पार नहीं पा सकते। उन्होंने कायक्लेश को वही स्थान दिया, जो स्थान स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए शल्य-चिकित्सा का है। देहाध्यास वास्तव में ही बहत गहरा होता है। उसकी जड़ों को उखाड फेंकने के लिए एक बार देह के प्रति निर्ममत्व होना होता है। रोग उत्पन्न होने पर औषध द्वारा उसका प्रतिकार न करना, इसी साधना की एक कड़ी है।" इस साधना की मृग-मरीचिका से तुलना की गई है। मृगापुत्र और उसके माता-पिता के संवाद से यह लगता है कि रोग का प्रतिकार न करना श्रमणों की सामान्य विधि थी। १. आयारो ८।५० । ७. वही, ११३५। २. उत्तराध्ययन, २।१३ । ८. वही, २६॥३४॥ ३. वही, ११।१४; १७११७ । ६. वही, २०६४१ । ४. वही, ३२।५। १०. वही, २१३२, ३३ । . ५. वही, २६४४ । ६. वही, २६।४० । । ११. वही, १९७५-८२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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