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अध्यापकों ने प्रशिक्षण लिया। कुछ रिसोर्स पर्सन भी तैयार हुए। फिर कुछ विद्यालयों को चुना गया। प्रथम बार में कुल बारह विद्यालयों को चुना गया। वहां जीवन विज्ञान के प्रयोग शुरू हुए। एक वर्ष के बाद जो परिणाम आए, वे आश्चर्यजनक थे। कोटा-भीलवाड़ा आदि कई नगरों के परिणाम देखकर ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित स्कूलों से भी मांग आयी-ये प्रयोग हमारे यहां भी कराए जाएं। . बम्बई का एक उपनगर है ठाणा । वहां एक स्कूल में जीवन विज्ञान का प्रयोग कराया गया। उसके निकट के मिशनरी स्कूल के लोगों ने उसे ध्यान से देखा। उन्होंने आग्रह किया-आप हमारे स्कूल में भी ऐसे प्रयोग कराएं। विद्यार्थियों के अनुभव पूज्य गुरुदेव उदयपुर पधारे। गुरुगोविन्द सिंह विद्यालय में जीवन विज्ञान का प्रयोग चला। वहां के प्रिंसिपल नियाज बेग ने अनुरोध किया-आप स्वयं चलकर हमारे विद्यालय में जीवन विज्ञान के प्रयोग को देखें। हम गए, वहां देखा। प्रयोग के बाद हमने विद्यार्थियों से बात की, उनके अनुभव सुने। अनेक विद्यार्थियों ने कहा- 'पहले हमें गुस्सा बहुत आता था, इस प्रयोग के बाद गुस्सा आना अब बिल्कुल बन्द हो गया है। कुछ विद्यार्थियों ने कहा-पहले पढ़ाई में हमारा मन बिल्कुल नहीं लगता था, अब पढ़ाई में मन लग रहा है। हमारी एकाग्रता बढ़ गई है और अब हम विषय को अच्छी तरह पकड़ रहे हैं। प्रिंसिपल नियाज बेग ने कहा'हमारे विद्यालय में अनुशासनप्रियता बढ़ी है।' उनके अनुभवों ने हमें और उत्साहित किया। आश्चर्य अभिभावकों का बीकानेर में जीवन विज्ञान के प्रयोग चले । तुलसी अध्यात्म नीडम् के निदेशक
और राजस्थान सरकार के शिक्षाधिकारी दोनों निरीक्षण के लिए गए। प्रिंसिपल से पूछा-आपके विद्यालय में कैसा रहा यह प्रयोग ? उन्होंने कहा-पहले हमने इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया। क्योंकि सरकार कोई न कोई योजना लागू करती ही रहती है। किस-किस पर ध्यान दें हम ? इस
२०४ : नया मानव : नया विश्व
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