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________________ घी से सींचो, वह कभी मीठा नहीं होगा। आज के वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों से दुनिया को बहुत बदल दिया है। अमरूद को बिना बीज का बना दिया। उसके रंग बदल दिये, उसमें सुगंध भी पैदा कर दी। कलम करके न जाने कितने फलों और अनाजों की नस्लों को बदल दिया गया। जब इतना सब कुछ हो रहा है तो हम क्यों माने कि आदमी नहीं बदल सकता। हमारा चिन्तन यह है-यदि अध्यात्म, योग और धर्म के द्वारा व्यक्तित्व का रूपान्तरण नहीं होता है तो इन तीनों को गंगा-यमुना में विसर्जित कर देना चाहिए। फिर इनका कोई उपयोग नहीं प्रेक्षाध्यान शिविरों का यह अनुभव रहा-बड़े क्रोधी और गुस्सैल लोग दस दिन के बाद लौट कर जब घर जाते हैं तो घर वाले आश्चर्य करते हैं कि यह कायापलट कैसे हो गया ? जब इतना परिवर्तन सामने आया, अनेक आश्चर्यजनक घटनाएं सामने आयीं तब पूज्य गुरुदेव के मन में एक बात आई। आपने कहा- 'हम लोग बड़े लोगों पर प्रयोग करते हैं। देश के दूर-दराज इलाकों में शिविर लगते हैं। अब तो देश के बाहर इंग्लैण्ड और अमेरिका में भी शिविर लगने लगे हैं। क्यों नहीं हम विद्यार्थियों पर इसका प्रयोग शुरू करें। पक्के घड़े को ठीक कर रहे हैं, उसकी अपेक्षा कच्चे पात्र को हम मनचाहे ढंग से क्यों न गढ़ें। इस कल्पना और उद्देश्य से जीवन विज्ञान का प्रादुर्भाव हुआ। निश्चय किया गया-इस प्रयोग को शिक्षा के साथ जोड़ें। पुस्तकों का बोझ बढ़ाने से क्या होगा ? विद्यार्थियों पर प्रयोग शुरू हुए। समस्या यह थी-प्रयोग कौन कराए ? विद्यार्थी बदल सकता है, उसका जीवन-निर्माण हो सकता है, पर प्रयोग कराए कौन ? उन दिनों राजस्थान के शिक्षा मंत्री थे चन्दनमल जी बैद। उन्होंने घोषणा की-राजस्थान में हम नैतिक शिक्षा लागू करेंगे। पूज्य गुरुदेव का जयपुर में आगमन हुआ। हमने शिक्षामंत्रीजी से कहा--आपने नैतिक शिक्षा को लागू करने की घोषणा कर दी। यह पुस्तकों के द्वारा पढ़ा दी जायेगी। पहले भी विद्यार्थी पर पुस्तकों का बोझ कुछ कम नहीं था, अब कुछ और बढ़ जायेगा। हम तो यह चाहते हैं-पुस्तकों का भार कुछ कम हो। यह जो २०६ : नया मानव : नया विश्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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