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ओलखाण
hi अनोखी विशेषतावां रा धणी, सरल सभावी, मोटापुरुष श्री भाईजी महाराज रो जलम, वि० सं० १९६४ मिगसर वद दस्स्यूं नै जोधपुर रियासत र बड़े हाथीवंध ठिकाणे ख्यात नामै लाडनूं नगर में हुयो । बांरो असल नांव हो मुनिश्री चम्पालालजी स्वामी । बै आचार्यश्री तुलसी रा संसार लेख मोटाभाई हा, इं वास्ते I सगलाइ जणां बांनै भाईजी महाराज कह्या करता ।
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बां रो टाबरपण रईसी मै रजवाडी ढंग स्यूं बीत्यो । दादा राजरूपजी खटेड़ राबै लाडला पोता हा । थोडीक बाणिका - महाजनी हिसाब-किताब पढ़' र बै १४ वर्षा की ओसथा मै बंगाल बेपार सीखण गया । बांरा पिताजी रो नांव झूमरमलजी तथा माजी रो नांव बदनकुंवरदे हो । आप छव भायां मैं, चोथा भाई हा। बार तीन हां ही ।
दादाजी री हपड़-हपड़ जलती चिता, राणावजी र कुअ पर भरथै कोठा मै डूबणै री घटणा है' र चेनरूपजी कोठारी री कलकते में गुंडा-बदमाशा स्यूं हुई मुटभेड़, बांरं वैराग रो कारण बण्यो ।
बै १९८१ भादवे लागती तेरस नै तेरापंथ धर्मसंघ रा आठवां आचारज पूजी महाराज श्री कालूगणी हस्ते दीख्या लेर जैन मुनि बण्या । एक वरस पछँ आप र सागी छोटे भाई तुलसी नै संन्यास लेण री परेरणा करी । बारी संसार लेख बड़ी बहन साध्वीप्रमुखा लाडांजी तुलसी मुनि रै सागै संसार छोड़' र साधु मारग लियो ।
इग्यारह वरसां तांई रात-दिन एक कर' र सावचेती स्यूं तुलसी मुनि री सार संभाल राखी । भाई ₹ खातर भाई कियां खप्यां करें है श्री भाईजी महाराज एक नजीर धरी । बांरो कठोर आंकस' र आचार-विचार री सावधानी शासण में नांव कर्यो । तुलसी मुनि ₹ आचारज बण्यां पछै माजी नै दीक्ष्या दिरा'र बै मांर करजै स्यूं उरण हुया ।
गेऊ वरणो रंग, तपूं तपूं करतो लिलाड, मोटी-मोटी लाल डोरदार आंख्यां, हाथी को सो पेंसो सरीर, हसतो - मुलकतो चेहरो है' र दडूकती आवाज देखणियां नै आज भी याद आवे है | जद बै चालता, बांरै हाथ मैं सर्प-मुखी गेडियो इसो ओपतो थाने के बताऊं ? बै आपरी लय रा न्यारा ही ओलिया पुरुष हा ।
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