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आप तो सुखे सुखे पोढ़ो ।
और सुबह ६-१० बजते-बजते श्री भाईजी महाराज का हार्ट बन्द हो गया । पौ फट गई। सुबह होते-होते अंधेरा छा गया। जिसने भी सुना, विश्वास नहीं हुआ | राजस्थान रेडियो ने बार-बार प्रसारण किया। दिल्ली ऑल इंडिया रेडियो ने समाचारों के बीच सूचना दी -- 'भाईजी महाराज नहीं रहे ।'
दाह-संस्कार उनकी जन्मभूमि लाडनूं में करना तय हुआ। जिसने भी सुना, जिसे जो साधन मिला, रात भर में हजारों लोग कलकत्ता, बम्बई, अहमदाबाद, पंजाब और मद्रास व बैंगलोर दूर-दूर से पहुंचे । लाडनूं की भीड़ भरी हर गली और हर जबान सूनी-सूनी थी । प्रत्येक मिलने वाला भीगी आंखों से बात करता था । बाजार बन्द हो गये । संस्थाओं ने स्मृति सभा के बाद अवकाश घोषित किया। झंडे झुका दिये गये । ठेले वालों ने ठेले नहीं लगाये । सब्जी वालों ने सब्जी नहीं बेची। यहां तक उस दिन मुसलमान भाइयों ने ( सिलावटों ने) पत्थर पर छेनी हथोड़ी नहीं चलाई ।
श्री भाईजी महाराज का पार्थिव शरीर लाडनूं पहुंचा। पूज्य गुरुदेव सुजानगढ़ रुककर दूसरे दिन मध्याह्न लाडनूं पधारे। सैकड़ों सैकड़ों बहिर-विहारी साधुः साध्वियों के परिवार में स्मृति सभा के बाद जैन विश्व भारती के प्रांगण में दाहसंस्कार सम्पन्न हुआ ।
उनके वस्त्रों को बदलते समय श्री सागर मलजी कोठारी (भाईजी महाराज के मामा के लड़के-भाई) को वह चिट्ट चद्दर के पल्ले बंधी मिली । उसमें लिखा
था-
'चम्पक' चवदस च्यानणी, याद रहेला रोज । सालासर की साखस्यूं, जा सागर ! कर मोज ॥'
अर्थ अपने-अपने हैं । यह उस सागर से कहा गया या इस सागर से ? हम दोनों एक ही परिवार से जो हैं ।
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