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जैन एकता का एक नमूना
मोती डूंगरी पर शौचादि कार्य से निवृत्त हो हम पुन: राजस्थान होटल पहुंचे। बिहार की तैयारियां हैं। आज नगर-प्रवेश है। शोभायात्रा और नागरिक अभिनन्दन में लोग बड़े चाव से लगे हुए हैं। स्थान-स्थान पर तोरण-द्वार सजे हैं। व्यक्तिगत द्वारों पर व्यक्तिशः अभिनन्दन पट्ट लगे हैं। संस्थागत तोरणों पर संस्थाओं के पट्ट अकित हैं। अनेक स्थानों पर प्रतिष्ठानों के द्वारा अभिनन्दन लिखित पट्ट हैं।
शोभा-यात्रा में भजन मंडलियां बड़ी तन्मयता से स्वागत गीत गा रही हैं। छात्र-छात्राएं, कन्या-मंडल, किशोर-मंडल, महिला-मंडल और युवक-मंडल अपनेअपने गणवेश में पंक्तिबद्ध चल रहे हैं।
त्रिपोलिया होकर ज्यों ही हम बड़ी चोपड़ पर पहुंचे। देखा, जोहरी बाजार का भव्य दृश्य सामने था। ऐसा लगता था जन-जनार्दन उमड़ पड़ा है। भीड़ में केवल आदमी ही आदमी नजर आ रहे थे। जौहरी बाजार के छज्जे, छत्तों और गोखे. झरोखे दर्शनोत्सुक महिलाएं और बच्चों से झुके जा रहे हैं। जीया बैंड अपनी छत पर पूरी मंडली के साथ स्वागत-धुन प्रस्तुत कर रहा है । पूरा बाजार जुलूसमय बन गया है। हजारों-हजारों जैन बन्धु आज साम्प्रदायिक भेदभाव भूलकर एक जैनाचार्य का अभिनन्दन करने एकरस हो रहे हैं।
बापू-बाजार तो हद ले गया। वे लाल-सुरख स्वागत पट्ट (बैनर्स) बाजार भर में लहरा रहे हैं। सभी का मिला-जुला उत्साह जयपुर के पूरे वातावरण को प्रभावित कर रहा है। शोभा-यात्रा रामलीला मैदान के पंडाल में जनसभा बन गयी। मंच पर आचार्यप्रवर आसीन हुए। एक ओर श्रमण-श्रमणी परिवार विराजमान है। जननेताओं और राजनेताओं के साथ-साथ जयपुर नगर की ओर से भूतपूर्व नरेश करनल सवाई भवानीसिंह स्वयं उपस्थित हैं ।
संस्मरण ३२६
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