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पक्के मकान, बढ़िया-बढ़िया कपड़े और रहीसी ठाठ-बाट, सभी मजदूरी से थोड़ा ही होता है ? मजदूर पेट तो भर सकता है, पर धन नहीं जोड़ सकता । धन का ढेर तो चोरी से ही होता है, सन्तों! ___अनपढ़ भेड़-बकरी चराने चाले, बच्चों की बात भाईजी महाराज के खटोखट जंच गयी। बात सोलह आना सही थी और थी बिना किसी नमक-मिरच के। सीधेसादे शब्दों में मन की खुली बात भाईजी महाराज को खूब पसन्द थी। आज दिन में बहुत बार मुनिश्री ने उसी बात को दुहराया-'माठा ! छोरा भारी ज्ञान की बात कही ।' प्रातःकालीन व्याख्यान में भाईजी महाराज ने वही प्रसंग छेड़ा और कहा
'एक जग्यां दरड़ों पड़े, (जद) ढिगलो दूजो ठोर। 'चम्पक' धन चोरी बिना, भेलो हवै न भोर ॥'
संस्मरण ३०७
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