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हमारी लक्ष्मण-रेखा
वि० सं० २०१६ उदयपुर चातुर्मास के बाद भी श्री भाईजी महाराज को वहीं रुकना पड़ा। पर मन नहीं लगा। थोड़ा-सा स्वास्थ्य सुधरा कि विहार किया। राजनगरकेलवा होते हुए हम दिनांक ७-२-६३ रीछेड़ पहुंचे । समग्र साधु संघ को साथ ले आचार्यश्री ज्येष्ठ बन्धु की अगवानी में पधारे । कोई डेढ़ मील दूर चारभुजा सड़क पर मिलन हुआ। समवसरण में पहुंचकर पुनः स्वागत वन्दना हुई । साध्वियों ने मंगल गीत गाये | आचार्य देव ने यात्रा संस्मरणों के साथ भाईजी महाराज के लिए अनेकों शब्द फरमाये । मिलन के अवसर पर आचार्यप्रवर ने एक छप्पय - छन्द के माध्यम से
फरमाया
उदयापुर से आप हम, चले मिले रीछेड़ सरल सड़क ली आपने, हमने ली भटभेड़ हमने ली भटभेड़, मोज-माणी मगरांरी, पग-पग दृश्य निभाल चाल धीमी डगरांरी । क्षेत्र-क्षेत्र संभाल मैं, लागी लम्बी गेड़, उदयापुर से आप हम, चले मिले रीछेड़ ॥
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उस दिन वि० सं० २०१६ पौष शुक्ला त्रयोदशी थी । सैकड़ों सैकड़ों बहिरबिहारी साधु-साध्वियां एकत्रित थे । मध्याह्न में आचार्यप्रवर के सान्निध्य में एक साध्वी समाज की संगोष्ठी हुई । आचार्यश्री सैकड़ों साध्वियों से घिरे हुए विराज रहे थे। चारों ओर साध्वियां ही साध्वियां । कहीं रास्ता नहीं । भाईजी महाराज आचार्यश्री के पास जाना चाहते थे । देखा, सभी रास्ते रुके हुए हैं। इधर पधारे रास्ता बन्द, उधर पधारे रास्ता बन्द । मुनिश्री ने जोर से कहा - 'सगला ही रास्ता बन्द हैं, के म्हे भी आ सका हां ?"
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संस्मरण २६१
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