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जी बोले, आपको टालोकर कहना नहीं कल्पता । कैसे कहते हैं आप ? उन्होंने तेरापंथ की कोई मर्यादा भंग नहीं की । भाईजी महाराज ने कहा- स्वामीजी ने फरमाया है जो आचार्य की आज्ञा का उल्लंघन करे, वह टालोकर । बोलो, वे किस की आज्ञा में हैं ?
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भाजी महाराज का कहना हुआ - 'स्वामीजी फरमाते हैं कि इतने में एक (मैं उनका नाम मौजूदगी में लिखना नहीं चाहता ) । साधुजी अपना आपा खो बैठे। बड़ी उत्तेजनापूर्वक बोले- चुप, चुप, चुप, आपको बोलने का फहम ही नहीं है ? कैसे बोल रहे हैं बिना ।
भाईजी महाराज ने उन्हें बीच में ही टोकते हुए, बड़े शांत भाव से कहादेखो ! तुम अभी मत बोलो। थोड़े ठंडे पड़ जाओ । गरमी में गरमी बढ़ती है । जाओ, जरा सुस्ता लो, फिर हम बात करेंगे ।
सुनने वाले सोच रहे थे, आज इन मुनिजी ने अपने हाथों अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है । अब तो काम कठिन है । भाईजी महाराज आचार्यश्री को कहेंगे । आचार्यश्री इसे बर्दास्त नहीं कर सकते, क्या जाने क्या होगा ?
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उनका भी चेहरा उतर गया । कह तो गये, उस समय आवेश था, ज्वार उतरा पश्चात्ताप भी हुआ । डर भी था । अहं भी था । सन्तों ने उन्हें भाईजी महाराज के पास जाकर माफी मांग लेने को कहा । पर उनका साहस नहीं पड़ा । वे आचार्यश्री के पास जा सकते थे, पर भाईजी महाराज के पास आना टेढ़ी खीर थी । वे इंतजार में थे । आचार्यश्री के दरबार में पेशी पड़े और वहीं मामला सलटे । सायं प्रतिक्रमण के पश्चात् एक सन्त भाईजी महाराज के पास आये और बोले -- यह तो सरासर उद्दण्डता है। कोई भी संघ का साधु, किसी विशिष्ट सम्मान्य मुनि की यों अवहेलना करे, अक्षम्य अपराध है, संघीय शालीनता के विरुद्ध है । आपको यह घटना आचार्यश्री से निवेदन करनी चाहिए। आपकी मरजी हो तो मैं पहुंचा दूं ।
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भाईजी महाराज ने फरमाया - तुम्हारे कहे बिना ही मैं तो स्वयं ताती का असवार । पर इस मौके पर गम खाने में मजा है । उसका क्या बिगड़ेगा ? उसमें यदि इतना ही विवेक होता तो वह बोलता ही नहीं । मैं चाहूं तो अच्छी शिक्षा दे सकता हूं, पर उसने निर्विवेकता की, क्या मैं भी उसी के बराबर हो जाऊं ? फिर क्या फर्क रहेगा उसमें और मेरे में । आचार्यश्री को तो और भी बहुत संक्लेश है । झंझट में एक और झंझट उनके गले डालूं ? मेरा क्या बिगड़ गया ? उसने कह दिया - 'बे फहम' कह लेने दो। मैंने तो निर्णय लिया है, न तो आचार्यश्री तक जाऊंगा और अगर कहीं से आचार्यश्री तक बात गयी भी, तो मैं सारा दोष अपने पर ले लूंगा । आचार्यश्री को इस मौके चिंता मुक्त रखना हमारा धर्म है । भाई ! ये छोटे-छोटे बोलचाल के झगड़े उन तक मत पहुंचाओ।
रात को जीवणमलजी सुराणा आये । उन्होंने बड़ी नम्रतापूर्वक खमतखामणा
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सस्मरण
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