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________________ ३५ एक अबूझ पहेली वि० सं० २००७ भिवानी चातुर्मास में एक आनुप्रासंगिक संस्मरण सुनाते हुए श्री भाईजी महाराज ने फरमाया, वह - पहला पहला दिन था, जिस दिन श्रद्धेय पूज्यपाद आचार्य कालूगणीजी ने मुनि तुलसी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया । नया-नया माहौल, नया परिवेश, सारा संघ प्रमुदित था । मेरी खुशी का क्या ठिकाना ? सैकड़ों सैकड़ों गृहस्थ और साधु-सतियों ने मुझे बधाइयां दीं। मन करता था मैं भी इन्हें कुछ दूं, पर मेरे पास देने को था क्या ? मेरे पैर धरती पर नहीं टिक रहे थे । एक अलौकिक आनंद की अनुभूति में मैं जी रहा था। कल के मुनि तुलसी आज युवाचार्य श्री तुलसी हो गये थे । उनके सारे वस्त्र - पात्र बदल दिये गये । पुराने उपकरणों को कितने ही संतों ने स्मृति स्वरूप मांग-मांगकर बड़े चाव से लिया । जब मुनि तुलसी का सिरहाना ( तकिया) खोला गया, उसमें एक कागज की स्लिप (परची) निकली। उस पर लिखा था- 'मां वदना ।' मैं नहीं जानता था -- -यह क्या है ? क्यों है ? कई सन्तों ने मुझसे उसका रहस्य पूछा, पर मैं बताऊं भी तो क्या ? मुझे सबसे बड़ी हैरानी तो यह थी - 'मुनि तुलसी के पास और मेरी जानकारी के बिना यह चिट ।' अब तक मैं उनका संरक्षक रहा। मुझे पूछे बिना, न उन्होंने कुछ खाया-पिया, न पहना ओढ़ा, न कभी आज तक कहीं बैठे-सोये, न किसी से कुछ लिया- दिया, अनुशासन का पर्याय मेरा छोटा भाई, आंख की पलक के इशारे चलने वाला, उसके पास यह चिट और उसमें 'मां वदना का नाम ।' जान तो लूं मेरे से प्रच्छन्न यह कब से ? पर अब वे संघ- पति के दायित्व पर थे । मेरा संरक्षणत्व दबकर रह गया । २५८ आसीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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