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________________ ३३ रजपूती का रंग वि० सं० २००६ का दिल्ली चातुर्मास सम्पन्न कर भाईजी महाराज जयपुर पधार रहे थे। मिगसर कृष्णा ६ को हम पन्द्रह मील का विहार कर मांडीखेड़ा पहुंचे। मांडीखेड़ा सड़क के एक ओर ५०-६० घरों की बस्ती है, चारों ओर जंगल, सुनसान । हम गांव के बाहर छोटे-से स्कूल में रुके । रात को कोई ६ बजे होंगे । गांव के ८-१० मुखिया आये और बोले- मुनिश्री आपके साथ बहनें-बच्चे हैं। यह स्थान जरा ऐसा ही है। चोरी-डकैती का भय रहता है । पीछे भी दो-तीन बार गांव लूटा गया है, अतः निवेदन है-महिलाओं को गांव में भेज दें, हमारी जिम्मेदारी है, ठीक रहेगा। उन्हें यह कहकर समझा दिया गया हमें क्या डर है, कौन-सी जोखिम है हमारे पास ? ठीक है, हम सावधान रहेंगे। सुनते ही बहनें तो घबरा गयीं। पर भाईजी महाराज को गांव में बहनों का जाना नहीं जंचा। कमरे में बहनों की अपनी व्यवस्था थी। भाईजी महाराज ने बाहर बरामदे में अपना बिस्तर लगवाया। सर्दी तो थी पर मैं और भाईजी महाराज बाहर में सोये । संतों ने दूसरी कोठरी में बिस्तर जमाये । शेष लोग दूसरे कमरे में थे, पर ठाकुर प्रतापसिंहजी ने अपना बिस्तर बाहर लगाया और बन्दूक सिरहाने रखकर सो गये। रात को एक बजे । अचानक बन्दूक का भड़ाका हुआ। एक के बाद दूसरा, तीसरा। गांव में हो-हल्ला मच गया। 'डाकू-डाकू' आवाजें सुन हम सभो सावधान हो गये । लोग भागे आ रहे थे। सड़क हमसे कोई २-३ फाग दूर है । वहां कुछ जलता-सा दीख रहा है । भड़ाके पर भड़ाके हो रहे हैं । प्रतापजी बन्दूक ताने रास्ते पर खड़े हैं। वे कह रहे हैं-डरो मत, आराम से अपने-अपने घरों में जाकर सोओ। यह राजपूत जब तक जिन्दा है और इसके हाथ में जब तक बन्दूक है, कोई २५४ आसीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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