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________________ पड़े। गांव के सैकड़ों और साथ के लोग बीच-बचाव कर रहे थे। वह बूढ़ा वेग में था। अंट-संट ग्रामीण भाषा में गालियां दे रहा था। आज मैं देख लूंगा, इन मोड़ों को। यह आधा पानी लाया और आधा क्यों छोड़ आया ? इसने टोणा किया है टोणा । मेरे में बीती है, मैं जानता हूं। मैं रोऊ तेरे उस बहनोइये को, जिसने मेरी गृहस्थी बरबाद कर दी। उसके हाथ-पांव पूरा शरीर गुस्से में थर-थर कांप रहे थे। श्री भाईजी महाराज कमरे से बाहर पधारे। सबको शांत किया और उससे पूछा-भाई पटेल ! क्या बात है ? पहले तुम्हें यह बताऊं। हम वे ढोंगी नहीं हैं। तेरापंथी साधु हैं । त्यागी हैं । इधर गांव के कुछ मुखिया आये। एक साधु के साथ अभद्र व्यवहार पर सबको खेद था। मुनिश्री ने कहा—पहले इसे अपने मन की बात कहने दो। हां, भाई बाबा ! बता, क्या हुआ ? हम नाराज नहीं हैं ? संत का लाया पानी ढोल देना अपराध है, पर मैं तुम्हें माफ करता हूं। पर तेरे हुवा क्या, यह तो बता? वह अब थोड़ा ठंडा पड़ा । बोला-बैठ लेने दो तो बताऊं । भाईजी महाराज बाहर चबूतरे पर बिराजे । वह भी बैठा । लोगों का मजमा सुन रहा था। उसने कहा- तेरे जैसा ही एक मुंहपटिया आया था, दो साल पहले। वह भी इसी तरह पानी लाया था जैसे यह बूढ़लिया लाया। मैं नहीं जानता यही था कि और कोई। आधा पानी लाया, आधा पीछे छोड़ आया। उसने लाए हुए पानी में कुछ पढ़ा। मेरी बहू पर कामण-टूमण किया। मैंने न करने जितने इलाज कराए, पर वह ठीक नहीं हुई। मैं पैसों से बरबाद हुआ । वह भी नहीं बची। मेरी आत्मा रौ रही है ! बोल ! अब मैं के करूं? वैसा ही इसने भी किया ? मन्नै बता तो सही एक चूंट पानी से इसका के घींटवा (गला) गीला होवै था? भाईजी महाराज ने कहा-ले बाबा ! अब मेरी भी सुन । अब तो तेरा बहम निकला न, तैने पानी ढोल दिया। अब तो इस पानी पर कोई कुछ नहीं पढ़ सकेगा? देख ! हम वे कामण पढ़ने वाले संत नहीं हैं। तू टोहाने के लाला रणजीतसिंह चौधरी को जानता है ? . बूढ़ा बोला-हां-हां खूब, बड़ा मातवर आदमी है चौधरी, के पूछना उसका। भाई जी महाराज ने कहा--और भगत मानसिंह को ? बूढ़ा बोला- अरे वाह ! वो तो धर्मात्मा है, महाराज ! साक्षात् भगत, सांचा भगत। तुम उसती कैसे जाण दे हो? ___ भाईजी महाराज ने फरमाया-बाबा! हम चौधरी रणजीतसिंह और भगत मानसिंह के गुरु हैं । उन्हीं से पूछ लेना, हम कैसे हैं ? यह देख, ये रहा लाजपतराय, चौधरी रणजीत का बेटा है, बेटा । बूढ़े ने पैर पकड़ लिये। महाराज माफ करना, मैं तो तेरी इज्जत बिगाड़ने संस्मरण २४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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