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कादापट्टी ? नहिं, नहिं, हरिसन-रोड
यों तो लाडनं का भौगोलिक ढांचा ही ऐसा है-वहां पानी रुकता नहीं। ढलाऊ जमीन के कारण बरसाती पानी बहकर निकल जाता है, पर चालू बारिस में जिधर से पानी का बहाव होता है वहां कीचड़ होना स्वाभाविक है । अक्सर बैंगानियों के रास्ते से गांव के ऊपरी भाग का सारा पानी निकलता है। वहां रास्ता मुश्किल से मिले, यह सहज बात है। आज चांदमलजी स्वामी का उधर जाना था। कीचड़ ज्यादा था । वे उकता गए । ज्योंही ठिकाने आये, आते ही उन्होंने चम्पक मुनि से कहा--'चम्पा!
सुन्दर हेल्यां रंग रंगील्यां, और गोचरी कटठी।
(पर) बैंगाण्यां रो रस्तो के है ? सागी कादापट्टी। भाईजी महाराज प्रारंभ से ही बैगानियों के महाराज कहलाते रहे हैं। कुछ जन्मगत संस्कार ही कहें। सेठ जीवणमलजी बैंगानी तो भाईजी महाराज को देखते ही झूम उठते थे । कभी-कभी तो वे भावावेश में चम्पक मुनि को बांहों में भरकर उठा लेते । सारे बैंगानी परिवार के बच्चे भाईजी महाराज के पास ही बैठते । उन्हीं से सीखते-नमोकार-तिक्खुतो, सामायिक-पाठ, पच्चीस बोल, चर्चा।
भला, भाईजी महाराज उस परिवार के मोहल्ले के संबंध में और फिर लाडनूं के एक प्रतिष्ठा प्राप्त घर-घराने के लिए ऐसी बात कैसे सुनते ? उन्होंने जवाबी पद्य में कहा
'पुन-सागर -सुमेर- जस्सू- रणजीतो- हनुमान, पेहर्या ओढ्या देवकुंवर-सा, औ टाबर पुनवान । बैंगाणी परिवार अनोखो, देखो! मन रो कोड। दगग-दगग रस्तो बेहवै है, जाणै हरिसन रोड ।
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