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________________ बड़ा वह, जो खिलाकर खाये उदारता सहज नहीं उभरती, जब तक आत्म-सम्मान न जगे। आधिपत्य की सुरक्षा का बोध ही दूसरों के दुःख में सहयोगी बनाता है। माता-पिता का संस्कार और व्यवहार, उदार बनने में शत-प्रतिशत काम करता है। आत्म-प्रतिष्ठा और स्वाभिमान जगे, इसलिए बच्चे के हर उचित कार्य की प्रशंसा आवश्यक है-ये शब्द थे स्व० भाईजी महाराज के । बचपन से ही चम्पूभाई दयालु थे। उन्हें मां बार-बार समझाया करती, बेटा! अच्छे लड़के हर चीज को मिल-बांट कर खाया करते हैं। अपने से कमजोर को कभी सताया नहीं करते। यही कारण था स्वर्गीय भाईजी महाराज सदा कमजोरों की सहायता करते। वे जो चीज खुद खाते, बांट-बांटकर खाना पसंद करते। ___ अपने अनुभव सुनाते हुए उन्होंने बताया-एक बार मैं आम खा रहा था। पास खड़ा मुसलमानी-मोलारी का लड़का टुगर-टुगर देखता रहा । उसका मन भी आम खाने को ललचा रहा था । वह अपनी मां के पास जा, रोने लगा। मां बरतन मल रही थी। उस गरीब मां के पास आम कहां था? उसने लड़के को डांटा । जब वह नहीं माना तो उसने एक थप्पड़ जड़ दिया। मुझसे देखा नहीं गया। मैं घर में जा, छींके पर से एक आम उतार लाया। उसको दिया। अब वह खुश था। उन दिनों हमारे मरुस्थल-प्रदेश में आम थे कहां? इने-गिने लोगों तक आम पहुंच पाते थे। कोई-कोई रईश ही आम का उपयोग करता था। ___ मां के पास मेरी शिकायत पहुंची। मुझे बुलाकर पूछा गया। मां ने आंख दिखायी। मैंने बाल-सुलभ सरलता से कहा-मां ! तुमने ही तो कहा था-हर चीज बांट-बांटकर खानी चाहिए। संस्मरण १६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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